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तृतीयकाण्डम् ३७० लिङ्गादिनिर्णयवर्ग:५
बुस्तं मुण्डं शीध्र कुष्ठं क्षेमं वेडितसगमम् ॥४३॥ कुट्टिमं शतमानार्म ताण्डवाव्ययशम्बलम् कसं कवियं कन्दं यूषं यूपं युगन्धरम् ॥४४॥ प्रग्रीवं चमसं पारावारं पात्रीव चिक्कसौ । अर्धर्चा दिगणेऽन्येषां घृतादीनां च संग्रहः ॥४५॥ तस्याकृतिगणत्वाद्धि बोद्धव्यो विबुधैः सदा । स्त्री पुंसयोस्तु विज्ञेया अपत्यत्ययान्तकाः ॥४६॥
(१) बुस्त (शष्कुलि, पकमांस, पनसफल) शब्द, मुण्ड (मुण्डितशिर) शब्द शोधु (शराव) शब्द, कुष्ठ (रोग विशेष) शब्द, क्षेम (कल्याण) शब्द, वेडित (चिक्कण) शब्द, संगम (मिलन) शब्द, कुट्टिम (फर्श) शब्द, शतमान (रूप्य का परिमाण विशेष) शब्द, अर्म (नेत्रगेग) शब्द, ताण्डव (ताण्डव नाच) शब्द, अव्यय (नाश रहित) शब्द, शम्बल (पाथेय) शब्द कार्पास (कपास) शब्द, कविय (घोड़े का मुख भाण्ड) शब्द, (कन्द कांदा) शब्द, युष (मांड चावल का ओसावन) शब्द, यूप शब्द, युगन्धर (कूवर) शब्द, प्रग्रीव (खिरकी] शब्द, चमस शब्द, पारावार शब्द, पात्रोव यज्ञपात्र विशेष] शब्द, चिक्कस [चिक्कन] शब्द पुल्लिंग एवं नपुंसक हैं। (२) घृत वगैरह शब्द अर्घर्चादि गण में पढे हुए होने से पुल्लिंग तथा नपुंसक हैं। (३)-यहां से स्त्रीपुंस इन दोनो का अधिकार चलता है अर्थात् निम्न प्रकार के शब्द स्त्रीलिंग तथा पुंल्लिङ्ग समझे जाते हैं जैसे-अपत्य (पुत्रपौत्रादि) अर्थ में विहित अण् इञ् वगैरह प्रत्ययान्त शब्द पुलिङ्ग तथा स्त्रीलिज होते हैं उदाहरण औपगवः औपगवी, दाक्षिः, दाक्षी, गागीः गार्गी इत्यादि ।
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