Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ तृतीयकाण्डम् ३६८ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ भावे 'कणनचिद् भिन्नाः समूहे भावकर्मणोः ॥३६॥ अदन्त प्रत्ययान्ताश्च शब्दाः क्लीवे प्रकीर्तिता । "पुण्याहं सुदिनाहञ्च द्वयमेतत्तथैव च ॥ ३७॥ क्रियाणामव्ययाना०चैकत्वं भेदके स्मृतम् । * उक्थं च तोडकं चोचं तिरीटं मर्म योजनम् ||३८|| गृहस्थूणं तथा पिच्छं गद्यं पद्यं कवेः कृतौ । (१) भाव में कण न और चित् (चकार संज्ञक ) प्रत्ययों से भिन्न अदन्त कृदन्त प्रत्ययान्त शब्द तथा समूह अर्थ तथा भाव कर्म अर्थ में विहित अदन्त तद्धित प्रत्ययान्त शब्द नपुंसक होते हैं जैसे भूतम्, भवितव्यम्, भवनोयम्, ब्रह्मभूयम् सांबराविणम्, सांकुटितम्, भैक्षम्, काकम्, वाकम्, कैदार्यम्, गोलम्, मौनम्, मार्दवम् मानोज्ञकम्, स्तेयम्, शौक्ल्यम् इत्यादि, किन्तु विघ्नः, स्वप्नः चयः, जयः, श्वपथुः इत्यादि । (२) पुण्याहं तथा सुदिना - हम्, ये दोनों शब्द नसक में प्रयुक्त होते हैं । (३) क्रिया तथा अव्ययों के विशेषण एक वचनान्त तथा नपुंसक होते हैं । जैसेमृदुपचति, प्रातः कमनीयम् इत्यादि । एवं शोभनं पठति, रमणीयं वदति इत्यादि स्थलों में मृदु शोभन तथा रमणीय ये किया के विशेषण होने से नपुंसक में प्रयुक्त हुए हैं। एवं प्रातः कमनीयम् यहां पर कमनीयं यह 'प्रातः ' इस अव्यय का विशेषण होने से नपुंसक में प्रयुक्त हुआ है । (४) उक्थ (सामवेद विशेष) शब्द, तोटक ( कलह करने वाला) शब्द, चोच (कदली फल-तालफल ) शब्द, तिरीट (वेष्टन) शब्द मर्म (प्राणसंस्थान) शब्द, योजन (परमात्मलीनता) शब्द, गृहस्थूल ( घर के बीच का स्तम्भ ) शद, एवं पिच्छ ( मोर का पांख) शद्व, एवं कवि की कृति विशेष रूप गद्य तथा पद्य शब्द नपुंसक में प्रयुक्त होता है । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390