Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 373
________________ तृतीय काण्डम् ३६० लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ कपोलाधरदोर्दन्त कोश कण्ठकरस्तनाः ॥ १५॥ 'अह्नादान्ताः नखक्ष्वेडा : रात्रान्ताः प्रागसंख्यकाः । " सरलाद्याश्च निर्यासा अन्नसन्ता अबाधिताः || १६ || 1 मेघवाचक अभ्रशब्द नपुंसक है । एवं दिन तिथि ये दोनो शब्द काल विशेषवाचक नपुंसक तथा स्त्रीलिंग भी माने जाते हैं । (१) कपोल अधरोष्ठ बाहु दन्त केश कण्ठ कर (टेक्स मालगुजारी वगैरह राजग्राह्य भाग एवं किरण हाथ और स्तन वाचक शब्द पुल्लिंग होते हैं । जैसे - कपोल: गण्डः अधरः ओष्टः, दन्तच्छदः दो बाहुः प्रवेष्टः दन्तः दशतः रदः जम्भः, केशः, कचः, कुन्तलः, चिकुरः, बालः, स्तनः, कुचः, पयोधरः इत्यादि शब्द पुल्लिंग है । (२) अह्न और अहः शब्दान्त शब्द पुल्लिंग होते है पूर्वाह्न, पराह्न द्वहः त्र्यहः इत्यादि। (३) नख और वेड (जहर) शब्द पर्याय पुल्लिंग हैं । नखः पुनर्भावः क्ष्वेड : गरलः । (४) असंख्या पूर्वक रात्र शब्दान्त शब्द पुल्लिंग है । सर्वरात्र: पूर्वरात्रः इत्यादि । (५) सरः आध शब्द से श्रो वेष्टः द्रवः श्रीवासः वृकधूपः गुग्गुलुः सिह्नकः इत्यादि निर्यास वृक्ष द्रव वाले वृक्षों का वाचाक शब्द पुल्लिंग है । (६) अनू अन्तवाले शब्द और असूअन्तवाले शब्द पुल्लिंग है-जैसे कृष्णवर्मा, प्रतिदिवा' मत्रवा अङ्गिराः वेधाः चन्द्रमा इत्यादि, किन्तु अनन्त और अनन्त शब्द भी यदि किसी विशेष अपवाद से बाधित होने पर पुल्डिंग नहीं होते जैसे - लोम, सम, वर्ग, वर्त्म, अप्सरसः जलौकसः सुमनस इत्यादि शब्द यथाक्रम नपुंसक स्त्रोलिंग है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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