Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya
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तृतीयकाण्डम् ३५६ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ वाणी वल्ली निशा विद्युन्नदी दिग्भूधियां तथा ॥४॥ अदन्तोत्तर शब्दश्चेद् द्विगुरेकार्थबोधकः । नो चेद् भुवनपात्राथै रदन्तै र्जातु संयुतः ॥५॥ समूहे येनिकैटय त्रास्तलू वैरमिथुनादिवुः । स्त्रियां क्तिन्ननिण्वुल्ण्वुज णज् युच् क्यवङिज निशाः
स्मृताः ॥६॥ (४) योनि सहित प्राणिवाचक शब्द भी स्त्रीलिङ्ग होता है जसे माता, दुहिता, याता, स्त्री, इत्यादि किन्तु दार शब्द योनि प्राणी स्त्रीवाचक होने पर भी पुंलिङ्ग ही हैं।
(१) वाणी, वल्लो, निशा, विद्युत्, नदी, भू, धी वाचक शब्दों के पर्याय स्त्रीलिङ्ग हैं जैसे-वाणी, वाक्, गौः, गो, वल्ली, लता, वीरुत्, निशा, रात्रि, रजनि इत्यादि ।
(२) अदन्तोत्तर पद द्विगु एकार्थक शब्द त्रिलोकी, दशमूली इत्यादि स्त्रीलिङ्ग हैं । किन्तु त्रिभुवन, पञ्चपात्र इत्यादि नपुंसक है। (३) समूह अर्थ में य, इनि, कटय, त्र, तल्, वैर, मिथुनार्थक वु प्रत्यय क्तिन् , अनि, ण्वुल्, ण्वुच, णच, युच, क्यप, अङ् इञ् निश और अ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रोलिङ्ग होते है । जैसे-य-पाश्या, इनि लिनी, डाकिनी, शाकिनी, कटय-रथकटया, त्र, गोत्रा, तलु देवता, ग्रामता, जनता, वैर मिथुन बु-अश्वमहिषिका काकोलूकिका,
अत्रि भरद्वाजका आदि शब्द से द्विपदिका गार्गिका काठिका शैष्योपाध्यायिका इत्यादि क्तिन्-मतिः, श्रुतिः, स्मृतिः, गतिः, कृतिः इत्यादि
अनि अजननिः, अकरणिः ण्वुल्लू-प्रछदिका, प्रचर्चिका, प्रवाहिका, ण्वुच् आसिका शायिका, इक्षुभक्षिका णच्-व्यावक्रोशी व्यावहासी
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