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द्वितीयकाण्डम् २५१
अन्त्यवर्णवर्ग:११ मदिरा' तु सुरा मधं कश्यं हाला परिस्रुताः। सीध्वासवौ तु मैरेय शुण्डा पानं तु मद्यभूः ॥४४॥ सरको मधपानो स्या च्चकः पानभाजनम् । पार्शको देवनोऽक्ष: स्यात्कैतवं द्यूतमस्त्रियाम् ॥४५॥ समिकः कितवो धृतोऽक्षधृतों इतकारकः । शारी स्यागुटिका गोटी प्रतिज्ञा तु पणः पुमान् ॥४६॥ शारिधिः शारिफलकं स्यादष्टापदमित्यपि ।
(१) मदिरा (दारु) के छ नाम-मदिरा १ सुरा २ स्त्री०, मद्य ३ कश्य ४ नपुं०, हाला ५ परिसुता ६ स्त्री० । (२) ईख (सेलडो) शाक (भाजी) आदि से बनाये गये मद्य के तीन नामसीधु १ आसव २ पु०, मैरेय ३ नपुं० । (३) मद्य घर के तीन नाम-शुण्डा १ नो०, पान २ नपुं०, मद्यभूः ३ स्त्री० । (४) मद्यपान का एक नाम-सरक १ पु० । (५) मद्यपान के प्याला के दो नाम-चषक १ पु०, पानभाजन २ नपुं. (६) जूआ खेलने के पासा के पांच नाम-पाशक १ देवन २ अक्ष ३ पु०, कैतव ४ धूत ५ पु., नपुं० । (७) द्यूतकार के पांच नाम-समिक १ कितव २ धूर्त ३ अक्षधूर्त ४ घतकारक ५ पु० । (८) पाशा खेलने को गोटी के तीन नाम-शारी १ गुटिका २ गोटी ३ स्त्री० । (९) शर्त लगाने के तीन नाम-प्रतिज्ञा १ स्त्री०, पण (ग्लह) २ पु० । (१०) जुआ खेलने के पट के तीन नाम-शारिधि १ पु., शारिफलक २ अष्टापद ३ नपुं० ।
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