Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 361
________________ तृतीय काण्डम् ३४८ नानार्थवर्गः ३ खेदानुग्रह संतोषाऽनुकम्पामन्त्रणे नतु । प्रश्नेऽवधारणेऽनुज्ञाऽऽमन्त्रणाऽनुनयादिषु ॥ २६८ || मङ्गलाऽनन्तर प्रश्नाऽऽरम्भ कृत्स्नेष्वथो अथ । यावत्तावच्च साकल्याऽवधि मानाऽवधारणम् ॥ २६९ ॥ तु पृच्छायां विकल्पे च नानाऽनेको भयार्थयोः । पुनैः सहार्थता शश्वत् आशद् दूर समोपयोः ॥ २७० ॥ आ: कोपेऽपि च पोडायां साक्षात् तुल्य सनक्षयोः । चान्वाचय समाहारे तरेतर समुच्चये ॥२७१ ॥ आमन्त्रण अनुनय विकल्प समुच्चय (१) 'ननु' प्रश्न अवधारण अनुज्ञा में । (२) 'अथो अर्थ' संशय अधिकार मङ्गल अनन्तर प्रश्न आरम्भ कृत्स्न (समस्त ) में । ( ३ ) ' यावत् तावत्' साकच्य अवधि मान अवधारण में (मेदिनी कार, प्रशंसा परिच्छेद मान अधिकार संचन पक्षान्तर कार्न अवधारण अर्थ बतलाए हैं ।) । (४) 'नु' प्रश्न विकल्प अतोत अनुनय में । (५) 'नाना' अनेक उभयार्थ विता के अर्थ में । (६) 'पुनर्' अथम अधिकार भेद पक्षान्तर में और 'शाश्वत' पुनर के अर्थ में सह अर्थ में। ( ७ ) ' आरात् ' दूर समीप में । (८) 'अ' स्मरण अकारण कोन पोडा में । (९) 'साक्षात् ' तुल्य समझ में । (१०) 'च' प्रधानकार्य के अविरोध से कर्यान्तर अवावय में (भिज्ञानट गाँ चाssतय) समाहार (समूह) में यथा संज्ञा परिभावम् मिचितों का अन्वय करना रूप इतरेतर योग में (यथा-धव खदेरौ ) परस्पर निरपेक्ष किसी एक को किसी एक में अन्वयरून समुच्चय में (यथा ईश्वरं गुरुं च भजस्व | पादपूरण में पक्षान्तर में विनिश्चय में । f. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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