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॥ अथ अव्ययवर्गः प्रारभ्यते ॥ अतीते 'ह्योऽनि विज्ञेयं भाविनि श्वस्तु कीर्तितम् परेधवि परेऽह्नि स्यात् परश्वस्तु परेऽहनि ॥१॥ तदा तदानीं वै तस्मिन् काल द्वयमुदीरितम् । युगपदेकदैकस्मिन् सर्वस्मिन् सर्वदा सदा ॥२॥ अस्मिन साम्प्रतमेतर्हि सम्प्रति चाधुना तथा । इदानी चेति विज्ञेय मयात्राह्नि प्रकीर्तितम् ॥३॥ पूर्वेऽहनि च पूर्वेयुत्तरेघुरादयः क्रमात् । उत्तरान्यतरान्यस्मादितराधर परादहः ॥४॥
हिन्दी-(१) 'ह्यः' अतीत कल दिन में ( 'हय' इसका वीता हुआ कल अर्थ होता है)। (२) 'श्वः, भावी कल दिन में (आगामी कल अर्थ होता है)। (३) 'परेद्यवि' परसों दिन में (वीता हुआ परसों होता है)। (४) 'परश्वः, भावो परसों दिन में (आनेवाला परसों अर्थ होता है) । (५) 'तदा, तदानीम्' ये दोनों उस काल में कहा हुआ है । (६) 'युगपत्, एकदा, ये दोनों एक काल के लिये प्रयुक्त होते हैं । (७) 'सर्वदा सदा,' ये दोनों हमेंशा के लिये प्रयुक्त होते हैं । (८) 'साम्प्रतं, एतहि, सम्प्रति, अधुना, ये चारों इस काल के लिये प्रयुक्त होते हैं। (९) 'इदानीम्, यह भी अभो अर्थ में प्रयुक्त होता है । (१०) 'अय' यह शब्द आज इस दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । (११) "पूर्वेधः' यह पूर्व दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । (१२) 'उतरेयुः' यह उत्तर दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । इसी प्रकार 'अन्यतरेयुः' अन्ये युः, इतरेयुः, अबरेयुः, परेयुः, ये स । भो क्रमशः किसी एक
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