Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 364
________________ ३५१ सुनोयकाण्डम् अव्ययवर्गः४ पूर्वे पूर्वतरेऽन्देऽस्मिन् परुत्परा Jषमः पुनः । अतीते स्म बेहि बर्बाह्ये प्रश्ने ॐ चानुनये त्वयि ॥५॥ उषा रात्र्यवसाने स्याद् हुतर्के च नतौ नमः । निन्दायां "दुष्ठु वै"सुष्टु प्रशंसायामुदीरितम् ॥६॥ प्रातः प्रगे प्रभाते स्यात् साये सायं प्रकीर्तितम् । प्रागैतीते सनी नित्ये कच्चित् काम प्रवेदने ।।७॥ युक्तार्थे साम्प्रतं स्थानेऽभीक्ष्णं शश्वन्निरन्तरे । अभावे हि नो न स्यात् प्रसोति हठार्थकम् ॥८॥ दिन में, दूसरे दिन इत्यादि अर्थों में प्रयुक्त होते हैं। (१) 'परुत यह शब्द गत वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है। (२) 'परारि' यह शब्द तीसरे वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है । (३) 'ऐषमः' यह शब्द इस वर्तमान वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है। (४) 'स्म' यह बीते हुए काल के लिये प्रयुक्त होता है । (५) 'बहिः' यह बाहर अर्थ के लिये आता है। (६) 'ॐ' यह प्रश्न अर्थ में है। (७) 'अयि, यह अनुमान (खुशामद) अर्थ में है। (८) 'उषा' यह रात्रिका अन्त अर्थ में है। (९) 'हैं। यह तर्क वितर्क अर्थ में है। (१०) 'नमः' यह नमस्कार अर्थ में है। (११) 'दुष्टु' यह निन्दा अर्थ में । (१२) 'मुष्ठु' यह प्रशंसा अर्थ में । (१३) 'प्रातः प्रगे' ये दोनों प्रातः काल अर्थ में । (१४) 'सायं' यह सायंकाल अर्थ में । (१५) 'प्राक' यह अतीतकाल अर्थ में । (१६) 'सना' यह नित्य अर्थ में। (१७) 'कच्चित्, यह इष्ट प्रश्न में । (१८) 'साम्प्रतम्, स्थाने' यह दोनों युक्त अर्थ में । (१९) 'अभीक्ष्णम्, शश्वत, ये दोनों लगातार अर्थ में । (२०) 'नहि, नो, न' ये तीनों अभाव अर्थ में । (२१) 'प्रसह्य' यह हठ अर्थ में प्रयुक्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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