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तृतीयकाण्डम्
विशेषणवर्ग २ भवेद् याचितकं याचा प्राप्ते प्रार्थित याचिते । प्राप्तेऽप्राप्तेऽदिते भिन्ने दीर्ण दारित भेदिताः ८५ दैग्वे प्लुष्टो-षित-अष्टः समाप्तेऽवसितः सितम् । हप्तं तु ज्ञपिते रुग्णं भुग्ने विद्धेतु वेधितम् ।८६। छिद्रं निर्वाण मग्नौ च मुन्यादौ च तनू कृते । तष्टस्त्वष्टोऽथशे मिते शान्तः संदोनिते सितः॥८७। मृतं मुदित बद्धे च सन्दितं "स्यात्तिरोहितम् ।
विलीनेऽन्तर्हितं चापि निलीनं "क्लिशिते पुनः।८८ (१) मांगने पर मिले हुए वस्तु का एक नाम-याचितक १ । (२) मांगे गए वस्तु के दो नाम-प्रार्थित १ याचित २ । (३) फाडे गए के चार नाम-भिन्न १ दोर्ण २ दारित ३ मेदित ४ । (४) जले हुए के चार नाम-दग्ध १ प्लुष्ट २ उर्षित २पृष्ट ४ । (५) समाप्त हुए के तीन नाम-समाप्त १ अवसित २ सित ३ (६) बोष प्राप्त कराये गये के दो नाम-ज्ञप्त १ ज्ञपित २ । (७) रोगी तथा चक्र के दो नाम-रुग्ण १ भुग्न २ । (८) शर आदि से वेधे गए के तोन नाम-विद्ध १ वेधित २ छिद्र ३ (९) निर्वाण के एक नाम-निर्वाण १ । (१०) छोटे या दुबले। के तीन नाम-तनूकृत १ तष्ट २ त्वष्ट ३ । (११) उपशान्त के दो नाम-शमित १ शान्त २ । (१२) बद्ध के छ नाम-सन्दानित १ सित २मूत ३ मुद्धित ४ वद्ध ५ सन्दित ६ त्रि० (मेदिनीकार अवसित अर्थात् समाप्त अर्थ में, सितं नपुं० शर्करा अर्थ में सिता स्त्री०, श्वत और बद्ध अर्थ में विशेषण मान-लिया हैं । (१३) छिपे हुए के चार.नाम-तिरोहित १ विलीन २ अन्तर्हित ३ निलीन ४ । (१४) क्लेश पार करते हुए के दो नाम-क्लिशित१ क्लिष्ट२।
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