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तृतीयकाण्डम् २९६
नानार्थवर्गः ३ निष्ठा नाशाऽन्तनिष्पत्ति याचा निर्वहणेषु च । इति ठान्ताः ।
अभिमानग्रहव्यूह मौन सैन्य दमादिषु ॥४८॥ कोण प्रकाण्ड मन्धान यमाऽश्यलगुङादिषु । पारिपाश्विक भेदेऽपि चण्डांशोर्दण्ड इष्यते ॥४९॥ इक्षु पाके भसन्नाह गोलकेषु गुंडो गुडा। स्नुही योषिच्च गुडिका स्यादि। बुधयोषिति ॥५०॥ गोभू वाक्ष्वपि भाण्डस्तु पात्रे भूषाऽश्वभूषयोः । वणिङ् मूलधक्ष्वेडो' विषे कर्णामयेध्वनौ ॥५१॥ रक्ताऽस्य फले पर्णे घोषपुष्पे नपुंसकम् । स्त्रियां वंशशलाकायां सिंहनादेऽथ वाच्यवत् ॥५२॥ दुरासदे च कुटिले काण्डो वर्गाऽश्व वारिषु । बाण स्कन्ध रहः स्तम्ब नाडीवृन्देषु कुत्सिते ॥५३॥
(१) 'निष्ठा' नाश अन्त निष्पत्ति याञ्चा निर्वहण अर्थ में पु० । इति ठान्ताः । (२) 'दण्ड' अभिमान ग्रह व्यूह मोन सैन्य दम आदि में एवं कोण प्रकाण्ड मन्थान यम अश्व लगुड आदि में, एवं सूर्य के पारिपविक भेद में प्रयोग होता है पु०। (३) 'गुड' इक्षुपाक हस्तिसंनाह गोलक में पु०, 'गुडा' तो स्नुही योषित् गुडिका अर्थ में स्त्री० । (४) 'इडा' बुध ग्रहयोषित् गो भू वाक् अर्थ में स्त्रो० । (५) 'भाण्ड' पात्र भूषा अश्वभूषण चणिमूलधन अर्थ में नपुं० । (६) 'वेड' विष कर्णरोग ध्वनी रक्तार्क वृक्षके फल पत्ते घोषपुष्प में नपुं०, वंशशलाका सिंहनाद में स्त्री०, दुरासद कुटिल में त्रि० । (७) 'काण्ड' वर्ग अश्व वारिवाण स्कन्ध रहस् स्तम्ब नाडीवृन्द कुत्सित् वृक्षभित् अर्थ में पु.नपुं।
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