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तृतीयकाण्डम्
नानार्थवर्गः ३ क्रिया विलासयो लीलाऽस्त्रो तेलोऽधः स्वरूपयोः । क्षेम पर्याप्ति पुण्येषु कुशलं शिक्षिते त्रिषु ॥२१५॥ सतृष्ण चलयो लोलो बोलो मूर्खर्भकेऽपि च । कृत्तिकासु स्त्रियां भूम्नि बर्हलोऽग्नौ शिते त्रिषु ।।२१६॥ श्वभ्रे कुंकूलं कीर्ण स्यात् शकुभिर्ना तुषाऽनले । गवाक्षाऽऽनायवृन्देषु क्षारे जाल मथोपला ॥२१७ । शर्कराऽपि च कीलालं शोणितेऽम्भसि च पलम् । आमिषे मौल यचूडा किरीटं संयताः कचाः ॥२१८॥
हिन्दी-(१) 'लीला' केलि विलास खेला शङ्गारभाव क्रिया में स्त्री० । (२) 'तल' स्वरूप अनुर्ध्व में पु० नपुं०, ज्याघातवारण (गोधा) कानन कार्यबीन में नपुं०, तालवृक्ष चपेट सरु (तलवार की मूठ) तन्त्रोघात (वीणा वजाना) में पु० । (३) 'कुशल' क्षेम पयोप्ति पुण्य में नपुं०, शिक्षित में त्रि० । (४) 'लोल' सतृष्ण चल में पु०, लोला स्त्री में रसना में स्त्री०, अन्यत्र में नपुं० । (५) 'बाल' मूर्ख अर्भक में त्रि० । वनस्पति विशेष में पु. नपुं०, कुन्तल गज एवं अश्वके बालधि में पु०, अलङ्कार मेध्य में 'बाली बाला' त्रुटि में स्त्रो० । (६) 'बहुला' नोलिका एला गो स्त्री में स्त्री०, कृत्तिकाओं में बहुवचनान्त स्त्रो०; विहायस् में नपुं०, अग्नि कृष्णपक्ष में पु०, प्राज्य कृष्ण में त्रि० । (७) 'कुकूल' खड्ढा में नपुं०, तुषाऽग्नि में पु० । (८) जाल' गवाक्ष आनाय वृन्द (समूह) क्षार (जन्म) में नपुं०, नोपद्रुम में पु० । (९) “उपल' प्रस्तर रत्न में पु०; शर्करा में स्त्री० । (१०) 'कोलाल' शोणित अम्भस् में नपुं० । (११) 'पल' उन्मान मांस में नपुं० । (१२) मौलि चूडा किरीट (मुकुट) धम्मिल्ल (संयतकेश) में पु० (कोषकारों
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