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तीयकाण्डम्
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नानार्थवर्गः३ मनोभवेच्छ योः कामो नैगमो निगमो वणिक ॥१६॥ ग्रामो वृन्देऽपि शब्दादि पूर्वः क्रान्ती तु विक्रमः । निगमा वणिक पथो वेदः पुरं स्वम कुलस्त्रियोः।।१६।। जामी रुक्सेनयोः स्तम्बे गुल्मः क्षान्तौ क्षितौक्षमा । अलसे कुटिले जिह्मो न्यूनेऽपि कुत्सितेऽधः ॥१६२।। क्षमः शक्ते हिते युक्ते वाम वल्गु प्रतीपयोः। रोमो बले नील चारु सितेऽपित्रिष्वुपक्रमः॥१६३॥ उपाय पूर्व आरम्भः उपधाऽथाऽध्यात्मकतवो।
(१) 'काम' स्मर इच्छा में पु., रेतस् निष्काम काम्य में नपुं०। (२) 'नैगम' उपनिषद् वणिक् नागर में पु० । (३) 'ग्राम' स्वर संवसथ वृन्द शब्दादिपूर्वक में पु० । (४) 'विक्रम' शक्ति सम्पत्ति और कान्तिमात्र में पु० । (५) 'निगम' वणिपथ वेद कट पुरी वाणिज में पु० । (६) 'जामि' स्वसा कुलस्त्रो में स्त्री० । (७) 'गुल्म' स्तम्ब प्लीहा घट्ट सैन्य सैन्यरक्षण वल्ली वृक्षविशेष समूह में पु० । (८) 'क्षमाः क्षान्ति तितिक्षा] क्षिति [पृथ्वी] में स्त्री० । (९) 'जिम' अलस कुटेल में त्रि० । (१०) 'अधम' न्यून कुत्सित में त्रि० । (११) क्षम'शक्त में हित में युक्त में त्रि० । (१२) 'वाम' सव्य प्रतीप द्रविण अतिसुन्दर पयोधर हर काम में त्रि०, इसका स्त्रालिङ्गरूप 'वामा' ही होता है । 'वामी' तो शृगाली अश्वा रासभो करभी अर्थ में ही होता है । (१३) 'राम' पशुविशेष जामदग्न्य बलराम दाशरथि सित श्वेत मनोज्ञ में त्रि० । (१४) 'उपक्रम' चिकित्सा आरम्भ विक्रम उपधा में पु. । (१५), 'सुक्ष्म' अध्यात्म कैतव में नपुं०, अग्नि में पु०, अल्प में त्रि।
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