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तृतीयकाण्डम्
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नानार्थवर्गः ३ पुंस्कोकिलेऽपि गन्धर्वः खेवरे दिव्यगायने । अन्तराभवसत्त्वेऽश्वे द्विजिहः सर्पसूचकौ ॥१५३॥ पूर्बजे नरि भूम्नि स्युः पूर्व प्रागग्रत स्त्रिषु । त्रिषु विक्रम होने स्याकोब पण्ढे पुमानपि ॥१५४।।
इति बान्ताः बालिशो वा शिशुडिम्भः सभा सभ्येऽपि संसदि । कुसुम्भः करके क्लीवं स्यान्महारजनेऽपि च ॥१५५॥ कुम्भो घटे भ मूनों नी शम्भु ब्रह्माऽईतोः शिवे । कुक्षे भ्रणेऽभके गर्मों "विसम्भः प्रणयादिपु ॥१५६॥
(१) 'गन्धव' पुंस्कोकिल खेचर दिव्यगायन अन्तराभवसत्व अश्व पशुभेद में पु० । (२) 'द्विजिह' सर्प में सूचक [चुगलखोर विशेष्यलिङ्ग । (३) ' पूर्वन में पु० बहुव बनान्त है, 'पूर्व' प्राक् अग्रत में त्रि० । 'कलीबं विक्रम हान में त्रि० षण्ढ में पु० नपुं० । इति बा.न्ता ।
(५) 'डिम्भ' बालिश अज्ञ और शिशु में पु० । (६) 'सभा' सामाजिक गोष्टि चूत मन्दिर में स्त्री० । (७) 'कुसुम्भ' करक अर्थात् पक्षिविशेष दाडिम एला (इलायची) मेघोपळ करङ्क कमण्डलु में पु०, महारजन में हेम में नपुं० । (८) 'कुम्भ' घट इभमस्तक राशिभेद वेश्यापति कुम्भकर्णसुन में पु०, त्रिवृत् अर्थात् शुक्ल त्रिधारा में गुग्गुल में नपुं० । (९) 'शंभु' महादेव परमेष्ठी अर्हत् विष्णु में पु० । (१०) 'गर्भ' कुक्षि भ्रूण अर्भक सन्धि पनसकण्टक में पु० । (११) 'विसम्भ' के ल कलह विश्वोस प्रणय वध में पु० (अमरमाला कोष ने परिचय प्रार्थना में भी माना है)।
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