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तृतीय काण्डम्
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नानार्थवर्ग: ३
अलीकं यातना कृत्योः कारिके भकरेऽङ्गुलौ । कर्णयो भूषणे पद्म बीजकोश्यां च कैर्णिका ॥१०॥ स्यात् सिते खदिरसोमर्वेल्लकः कट्फलेऽपि च । शालवृका: कपौ क्रोष्टु शुनोरप्यथ कालिका ॥११॥ वृश्चिके मेघ जालेsपि करिण्यां गवि धेनुका । सोमे जैवातृकः पुंसि दीर्घायुषि कृशे त्रिषु ॥१२॥ विहङ्गमे द्वयोः पुंसि खुरेत्वश्वस्य वर्तकः व्याघ्रादौ पुण्डरीकं ना यवान्यादिषु दीपैकः ॥ १३ ॥ (१) अमृत अप्रिय अर्थ में 'अलीक' है नपुं० । (२) यातना और कृति अर्थ में 'कारिका' है स्त्री० । (३) हाथी की सूढ अंगुली कर्णभूषण कमलकोष अर्थ में 'कर्णिका' है स्त्री० (सुपारी के गुच्छा, सूक्ष्मवस्तु अत्यन्त, आग्न मन्थ में भी है) । (४) श्वेत स्वदिर कायफल अर्थ में 'सोमवल्क' है पु० । (५) क्रोष्टा कपि कुक्कुर (कुत्ता) अर्थ में 'शालाक' है पु० । ( ६ ) मेघ समूह अर्थ में 'कालिका' हैं स्त्री० और चण्डिका भेद १ का २ वृश्चिक ३ पत्र ४ क्रमदेयवस्तु मूल्य ५ धूसरीमेव ६ नवमेघ ७ पटोल शाखा ८ रोमाली ९ मांसी १० काकी ११ शिवा १२ घूसरी योगिनी भेद १३ उमा १४ अर्थ में भी है। (७) करिणी और धेनु अर्थ में 'धेनुका' (वशा) अर्थ हो तो स्त्री०, राक्षस दानव विशेष में पु० । (८) चन्द्र अर्थ में 'जैवातृक' पु०, दीर्घायुस् कृश (कृषक) अर्थ में त्रिलिङ्ग । (९) विहङ्गम अर्थ में 'वर्तक' पु० त्रो०, अश्व खुर अर्थ में पु० । (१०) व्याघ्र अग्नि दिङ्नाग कोशकार अर्थ में 'पुण्डरीक' पु०, सिताम्भोज सितच्छत्र भेषज अर्थ में भी नपुं । (११) वागलङ्का [वाणीके अलङ्कार ] दीप्तिकारक अर्थ में 'दीपक' वाच्यलिङ्ग है और अजमोदा यवानी बर्डिचूड़ा अर्थ में पु० है ।
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