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सृतीयकाण्डम् २५८
प्रकीर्णवर्गः१ वृतौ वरो हैवो हूतौ, निगादैः परिभाषणे । अनुहोऽनुकम्पाया-मभियोगस्त्वभिग्रहे ॥१९॥ परिणामः फले श्रीयः श्रयणे जयने जयः । इङ्गितेत्विङ्ग आकारो विकारो विक्रियार्थकः ॥२०॥ "प्रसूतौ प्रसवो दोन्तौ दमः शान्तौ शमस्तथा ।
उत्कर्षाऽतिशयौ तुल्यौ क्लेमो ग्लानौ स्न: स्तवे॥२१॥ (१)वाड़ (वेष्टन) के दो नाम-वृत्ति १ स्त्री , वर२पु०। (२) बुलाने के दो नाम-हव १ पु०, हुति२ स्त्रो० । (३) निन्दा के साथ उपालम्भ के दो नाम-निगाद (नगद) १ पु. परिभाषण २ नपु.। (४) अनुकम्पा के दो नाम-अनुग्रह १ पु, अनुकम्पा २ बी० । (५) आरोप (दाबा) के दो नाम-अभियोग १ अभिग्रह २ पु० । (६) परिणाम के दो नाम- परिणाम १ पु०, फळ २नपुं० । (७) सेवा के दो नाम-श्राय १ पु०, श्रयण २ नपुं०। (८) जय के दो नाम-जयन १ नपुं०, जय (विजय) २ पु०। (९) अन्दर की चेष्टा के तीन नाम-इङ्गित १ इङ्ग २ आकार ३ पु०। (१०) प्रकृति का अन्यथा भावहोना 'विकार' है पु० । (११) प्रसव के दो नाम-प्रसूति १ स्त्री प्रसव २ पु० । (१२) तपस्या के क्लेशों को सहन करने के दो नाम-दान्ति १ स्त्री. दम २ पु० । (१३) काम क्रोध आदि के अभाव के दो नामशान्ति १ स्त्री०, शम २ पु० ।(१४) अतिशय के दो नामउत्कर्ष १ अतिशय २ पु० । (१५) ग्लानि के दो नाम-क्लम १ पु०, ग्लानि (ग्लनि) २ स्त्री० । (१६) स्तुति के दो नाम-स्नव १ स्तव २ पु० ।
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