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तृतीयकाण्डम्
विशेषणवर्गः २. निविडं'तु घनं सान्द्रं विरले पेलवं तनु । समौ विरक्त निविण्णौ स्याद्विकासी विकस्वरः ॥३२॥ क्षमाशीलः क्षमिक्षान्त सहिष्णु सहनाः समाः। निद्राणः शयितः सुप्तः स्निग्धसान्द्रे तु मेंढुरः ॥३३॥ ‘क्षिप्नु निराकरिष्णुः स्या त्प्रसारी तु विसृत्वरः । भैविष्णु भविता भूष्णु विदुर ज्ञात बिन्दवः ॥३४॥ लज्जाशिलेऽपत्रपिष्णु वन्दारु वन्दकः समौ । "मण्डनोऽलङ्करिष्णुः स्याद् हिंसके हिंस्रघातुको ॥३५॥
(१) अधिक मात्रा में एकत्रित के तीन नाम-निबिड १ घन २ सान्द्र ३ । (२) दूर दूर पर ओछी संख्या वाले के तीन नामविरल १ पेलव २ तनु ३। (३) पुरुषार्थ नष्ट होने पर अपमानीत के दो नाम- निर्विष्ण १ विरक्त २ (नानार्थ)। (४) विकासोन्मुख के दो नाम- विकासी १ विकस्वर २ । (५) क्षमाशील के पांच नाम- क्षमाशील १ क्षमी २ क्षान्ता ३ सहिष्णु ४ सहन ५ । (६) सोए हुए के तीन नाम- निद्राण १ शयित २ सुप्त ३। (७) चिकने धन का एक नाम- मेदुर १ । (८) निकालने वाले के दो नाम-क्षिप्नु १ निराकरिष्णु २। (९) फैलाने फैलनेवाले के दो नाम- प्रसारी १ विसृत्वर २ । (१०) होनहार के तीन नाम- भविष्णु १ भविता २ (भवित) मूष्णु ३ । (११) जानकार के तीन नाम-विदूर १ ज्ञाता (ज्ञात)२ बिन्दु ३ ।(१२) लज्जाशील के एक नाम- अपत्रपिष्णु १। (१३) वन्दना करने वाले के दो नाम- वन्दारु १ वन्दक २ । (१४) अलङ्कारप्रिय के दो नाम- मण्डन २ अलङ्क रेष्णु १। (१५) हिंसक के तीन हिसक १ हिंस्र २ घातुक ३ ।
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