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द्वितीयकाण्डम्
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अन्त्यवर्णवर्गः ११
माहिष्यः कुलकः शिल्पि मुख्येऽथ कारु शिल्पिनौ ॥५॥ माली तु माहिको माला - कारस्ता तु वर्धकिः । काष्ठत रथकारथ माहिष्यात्करणी सुतः ॥ ६ ॥ nirasaaraस्थो ग्रामतक्षो वशे स्थितः । 'सौचिकस्तुन्नवायोश्च दरजिद्दरजिस्तथा ॥७॥ शाणेकृत्त्वसिधावः स्यात्कुलीलः कुम्भकारकः । at कृद्राजकारिच पलगण्डः सुधाकरः ॥ ८॥ अथ चित्रकैरो रङ्गराजो रजैकधावकौ ।
(१) वैश्य कन्या में क्षत्रिय से उत्पन्न का एक नाम - माहिष्य १ पु. १ (२) शिल्पकारों में मुखिया का नाम - कुलक १ पु . । (३) [चित्रकार, कारीगर ] के दो नाम-कारु १ शिल्पी २ पु . । (४) माली के तीन नाम - माली १, मालिक २ मालाकार ३ पु. । (५) बढइ के चार नाम - तक्षा [तक्षन् ] १ वर्धक २, काष्ठतद् ३, रथकार ४ पु. [ए माहिष्य से करणी में उत्पन्न हुए हैं ] । ( ६ ) स्वतन्त्र बढइ का एक नाम - कोटतक्ष १ पु. । (७) ग्रामवासी काममें लगे हुए बढइ का एक नाम - ग्रामतक्ष १ पु. । (८) दर्जी के चार नाम - सौचिक १, तुन्नवाय २, दरजित् ३, दरजि ४ पु . । (९) सगलीगर [राराणिआ] के दो नाम-शाणकृत् १, असिधावक २ पु. । (१०) कुम्भकार के दो नाम - कुलाल १, कुम्भकार २ पु. । (११) पलस्तर [ चूना आदि - लगाने वाले ] करनेवाले कारीगर के चार नाम - लेपकृत् १, राजकारि २. पलगण्ड ३, सुधाकर ४ पु. 1 ( १२ ) चित्रकार के दो नाम-चित्रकर १ रङ्गराज २ ० । (१३) धोबी के दो नामरजक १ धावक २ पु० ।
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