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द्वितीयकाण्डम्
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क्षत्रियवर्गः ९
पांशुः' पुमान्द्वयौ रेणु र्धृलिः स्त्री न द्वयो रजः ॥ ११५ ॥ क्षोदच्चूर्णेऽथ वीरैराऽऽशंसनं भूर्भूरि भीतिदा ।
अहं पूर्वं क्रियाऽऽशंसा स्याददं पूर्विकामिथः ॥ ११६ ॥ आत्मसंभावना दर्पा दाहोपुरिषिका मता । शक्तिः पराक्रमः प्राणः स्थामशौर्ये सहोबलम् ||११७॥ तरोद्रविण शुष्माणि विक्रमोऽत्यन्त शक्तिता । चार्लोट्टने वीर - पण पश्चात्पुरायुधः ॥ ११८ ॥ जन्मायोधनं युद्धं प्रधनाssस्कन्दने मृधम् ।
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(१) धूल के चार नाम-पांशु १ पु०, रेणु २ स्त्री. पु० धूलि ३ स्त्री, रजस् ४ नपुं । (२) आटे के दो नाम क्षोद १ चूर्ण २ पु० । (३) घोर युद्धभूमि का एक नाम वीराशंसन १ नपुं. । (४) पहले मैं करूँगा का एक नाम अहंपूर्विका १ स्त्री० । (५) सामर्थ्य रहते हुए वीरावेश में उस कार्य को पूरा करने का भार लेने का एक नाम आहोपुरुषिका १ स्त्री० । (६) पराक्रम के दश नाम-शक्ति १ स्त्री, पराक्रम २ प्राण ३५०, स्थामन् ४ शौर्य ५ सहस् ६ बल ७ तरस् ८ द्रविण ९ शुष्मन् १० नपुं. । ( ७ ) अत्यंत संचित शक्तिका एक नाम - विक्रम १ पु० । (८) चालन के दो नाम - चालन १. उद्घट्टन २ नपुं । (९) उत्साह बढाने के लिये संग्राम से पहले अथवा परिश्रम दूर करने के लिये युद्ध के बाद जो नारिकेल आदि के जल का पान है उसका एकनाम - वीरपाण ९ नपुं. । (१०) युद्ध के एकतीस नाम- जन्य १ आयोधन २ युद्ध ३ प्रधन ४ आस्कन्दन ५ मृध ६ प्रविदारण ७ संख्य ८
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