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द्वितीयकाण्डम्
वनस्पतिवर्ष घनसारस्तु करिश्चन्द्रः स्त्री हिमतालुका ॥५२।। लिके स्यादर्कमूला सुनन्दा च विषापहा । कुङ्कुम केसरे रक्तचन्दनन्तु कुचन्दनम् ॥५३॥ श्रीखण्डे चन्दनं गन्ध-सारं पाटीरमस्त्रियाम् । देवदाविन्द्रदारुस्यात् क्लोबेऽगरुकजोङ्गकम् ॥५४॥ धृपवृक्षश्च सरल स्तगरश्च महोरगः ।
पनकं पद्मकाष्ठे स्यात् समौ कोर्शिकगुग्गुलौ ॥१५॥ पर्ण २, विशालत्वक् ३, अयुक्छद ४ पु० । (१०) (कस्तूरो के तीन नाम-मृगनाभि १, मृगमद २ पु०, कस्तूरी ३ स्त्री. कस्तूरी मोषधीवृक्ष का फल भो है जिसे लता कस्तुरी कहते हैं)। (११) कपूर के चार नाम-धनसार १, कर्पूर २, चन्द्र ३ पु०, हिमवालुका ४ स्त्रो। (१२) पुलिक (इसरगत) के चार नाम-पुलिक १, पु०, अर्कमूला २, सुनन्दा ३, विषापहा ४ स्त्री० ।।
हिन्दी-(१) कुंकुम के दो नाम-कुङ्कुम १ नपुं,०, केशर २ पु० नपुं । (२) रक्तचन्दन के दो नाम-रक्तचन्दन १, कुचन्दन २ नपुं । (३) श्रीचण्ड के चार नाम-श्रीखण्ड १, गन्धसार २, चन्दन ३, पाटीर ४ पु. नपुं० । (४) देवदारु के दो नाम-देवदारु १, इन्द्रदार २ नपुं० । (५) अगर के दो नाम-अगरु (अगर) १, जोङ्गक २ नपुं० । (६) धूपवृक्ष के चार नाम-धूपवृक्ष १, सरल २, तगर ३, महोरग ४ पु• । (७) पद्मकाष्ठ के दो नाम-पाक १, पाकाष्ठ२ नपुं० । (८) गुग्गुल के दो नाम-कोशिक १, गुग्गुल २ पु० । (९) धूप के पांच
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