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द्वितीयकाण्डम्
मानववर्गः ७ भाविते त्रिषु, माल्यादेः संस्कारस्त्वधिवासनम् ॥११७॥ न्यस्तामूनि भवेन्माल्यं मालास्रक् कुसुमावलिः । गर्भकः केशमध्यस्थं ललाटस्थं ललामकम् ।।११८॥ प्रभ्रष्टकं शिखान्यस्ते प्रार्लम्ब कण्ठलम्बिनि । रचनायां परिस्पन्दः समा वीपीड शेखरौ ॥११९।। शय्यायां शयनं तल्पं स्यादाभोगैस्तु पूर्णता । तूलेतल्पं तल्पभेदे गेन्दु कः कन्दुकः पुमान् ॥१२०॥ उपधाने तूपबों-च्छीर्षों, खट्वा तु खरविका ।
(१) कार्यारम्भ से पूर्व ही कार्ययोग्य वस्तुओं का संकलन कर लेना अधिवासन ३ नपुं० । (२) माला के तीन नाम-माल्य १नपुं०, माला २ सक् (स्रज्) ३ स्त्री०। (३) केश मध्य में लगाई गई माला का एक नाम-गर्भक १ पु० । (४) ललाट के उपर तिलक आदि का एक नाम-ललामक १ नपुं० । (५) चोटी पर लटकतो माला का एक नाम-प्रभ्रष्टक १ नपुं० । (६) कण्ठ में लटकतो माला का एक नाम-प्रालम्ब १ नपुं० ! (७)शिल्प आदि रचना के दो नाम-रचना १ स्त्री०, परिस्पन्द (परिस्यन्द) २ पु० । (८) शिखा संलग्न वह माल्य के दो नाममापीड़ १ शेखर २ पु० । (९) शय्या के तीन नाम-शय्या १ शयन २ तल्प ३ नपुं० । (१०) प्रत्येक सामान का परिपूर्णता का एक नाम-आभोग १ नपुं० 1 (११) गद्दो का एक नाम- तूलतल्प १ नपुं.। (१२) गेन्द के दो नाम-गेन्दक १ कन्दुक २ पु.। (१३) तकिया के तीन नाम-उपधान १ . नपुं० उपबहे २ उच्छोर्ष ३ पु० । (१४) खटला के दो नाम-खट्वा ११ खद्विका २ स्त्री० ।
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