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द्वितीयकाण्डम्
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मानववर्गः . आचार्याणी तु पुंयोगाद् आचार्या विदुषी स्वयम् ॥१३॥ अर्याण्यर्या जातिमात्रे क्षत्रिया क्षत्रियाण्यपि । जातापत्या प्रसता च प्रयाता च प्रसूतिका ॥१४॥ कोटवी नग्निका नग्ना वीरमातरि वीरसूः। वीरपत्नी भवेद् वीर-भार्या दृर्तिस्तु दृतिका ॥१५॥ साऽसिक्नीयाऽवरोधस्तथा युवती दूतिकापदे । स्ववशा परमेश्मस्तथा सरन्ध्री शिल्पकारका ॥१६॥ वेश्या वाराङ्गना रूपा जीवा च गणिका जनैः।
(१) आचार्य पत्नी अर्थ में 'आचार्याणी' और स्वयं विदुषी को 'आचार्या' कहा जाता है स्त्री० । (२) वैश्यपत्नी अर्थ में 'अर्थी' और जाति मात्र में 'अर्याणी, अर्या' स्त्री० । (३) क्षत्रिय जाति अर्थ में 'क्षत्रिया' और क्षत्रिय पत्नी अर्थ में 'क्षत्रियी' को । (१) प्रसूतिका खी के चार नाम जातापत्या १ प्रसूना २ प्रयाता ३ प्रसूतिका ४ खो० । (५) नग्न खी के तीन नाम-छोटवा १ नग्निका २ नग्ना ३ नो । (६) वोरमाता के दो नाम-बोरमाता १ वीरसू २ स्त्रो०। (७) वीरपत्नी के दो नाम-वीरपत्नी १ वीरभार्या स्त्री० । (८) दूती के दो नाम-दूति (दूनी) १ दुतेका २ स्त्री० । (९) राजमहल में जो युवती दूती है उसका एक नाम-मसिनो १ स्त्री० । (१०) शिल्पकला निपुण स्त्री का एक नाम-सैरन्ध्र) (सैरिन्ध्री) १ स्त्री० । (११) वेश्या के चार नाम-वेश्या ? वाराङ्गना २ रूपाजीवा ३ गणिका ४ स्त्री० ।
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