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प्रथमकाण्डम्
- अव्ययवर्गः १०
एषमोऽस्मिन् परत पूर्वे परौर्यब्दे ततोऽपि च । पूर्वोत्तराऽपराऽन्याऽन्य-तरादितरतोऽधरात् ॥२१॥ पूर्वाद्यहःसु पूर्वेधु रादयः स्युः क्रमादिमे । रुद्रकोशे तु पूर्वेयुः प्रातर्वा पूर्ववासरे ॥२२॥ परेयवि परेऽह्निस्या दुभयेधुदिनद्वये । वितथेस्तोमृषा मिथ्या सत्त्वेऽस्ति नमने नमः ॥२३॥
अर्थ में 'स्वधा, स्वाहा' हैं । (५) असाकल्प अर्थ में 'चित् , चन' हैं। (६) मौन अर्थ में 'तूष्णी, तूष्णीकाम्' हैं । (७) निश्चित अर्थ में 'अवश्यं, नूनम्' हैं। (८) निश्चय अर्थ में- 'आम् , एवम्' हैं। (९) प्रभात अर्थ में 'प्रातः, प्रगे' हैं। (१०) तर्क वितर्क अर्थ में 'हुँ' है। (११) प्रश्नवाचक अर्थ में 'ऊं, ननु' है । (१२) इस वर्ष (चालु सोल संवत्) अर्थ में 'ऐषमस्' है । (१३) वीते हए (इस वर्ष से अव्यवहित पूर्व) वर्ष अर्थ में 'परुत्' का प्रयोग होता है। (१४) परत् से पूर्व वर्ष को 'परारि' कहते हैं। (१५) पूर्व १, उत्तर २, अपर ३, अन्य ४, अन्यतर ५, इतर ६, अधर ७ इन सात शब्दों से 'पूर्वे, अहनि' इत्यादि अर्थों में___'पूर्वेयुः, उत्तरेयुः, अपरेयुः, अन्येयुः, अन्यतरेयुः, इतरेयुः, अधरेयुः' निपातन से बनते हैं। (१)रुद्रकोष में 'पूर्वेद्यः' का प्रयोग 'प्रातः' अथवा 'पूर्वदिवस' अर्थ में माना गया है। (२)पर दिवस अर्थ में 'परेद्यवि' होता है । (३) जहां दोनों दिनों में ऐसा अर्थ हो, वहां 'उभयेधु (उभया)' होते हैं। (४) व्यर्थ (फिजूल)
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