________________
७८
प्रथमकाण्डम्
अव्ययवर्गः १० साम्ये यथा तथा वे वाऽतिशयेऽतीवे मुष्ठु च । झटित्यहाय मक्षुद्रा गजसा सपदि द्रुते ॥१८॥ हवि र्दाने स्वधा स्वाहाऽसाकल्पे चित् चनेत्युभे । तूष्णीं च तष्णिकां मौनेऽवश्यं नूनं च निश्चिते ॥१९॥ आम् एवं निश्चये प्रातः प्रभातार्थे प्रगेऽपि च । तके वितर्के हु° प्रश्ने ॐ ननु द्वे प्रयोजिते ॥२०॥
(१) सम्बोधन में- 'अङ्ग, हे, है, भोस् (पाट, प्याट्) हैं। (२) वार्ता संभाव्य (अनुनय, अरुचि) में 'किल' है । (३) विकल्प में 'उताहो, आहो, आहोस्वित् (किं किमूत) हैं । (४) निश्चय में 'नु' है। (५) नीच सम्बोधन में 'अरे, रे' हैं । (६)आवेग अर्थ में "त्वरा, संभ्रमसू' हैं । (७) हलात् (बलजोरी जबर्दस्ती) अर्थ में "प्रसह्य, प्रतिक्षणम् , अनुक्षणम्' हैं । (८) वर्जन (निषेध) अर्थ में "हिरुक, नाना' हैं । (९) हेतु अर्थ में 'यत्, तत् , यतस, ततसू' हैं। (१०) शुक्ल पक्ष अर्थ में 'सुदि' है . (११) कृष्ण पक्ष अर्थ में 'वदि' है । (१२) वत्सर (साल)अर्थ में 'संवत्' है । (१३) अह्नि (दिवस) अर्थ में 'दिवा' है । (१४) रात्रि अर्थ में 'नक्तं, दोषा' है। (१५) अपने अपने किया अर्थ में 'स्वयम्' है । (१६)नूतन काल में 'अद्धा, अर्वाक्, अवर' है। (१७) निश्चय अर्थ में 'तु, हि, च, स्म, ह, वै' हैं।।
(१) साम्य अर्थ में 'यथा, तथा, व, वा, इव' है। (२) अतिशय अर्थ में 'अतीव, सुष्टु' हैं। (३) झटपट (द्रुत) अर्थ में "झटिति, अह्नाय, मंक्षु, द्राक, अञ्जसा, सपदि' हैं । (४) हविर्दान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org