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द्वितीयकाण्डम्
वनस्पतिवर्गः४
कणिकारः परिव्याधः लिकुंचे लकुचोडहुः ||२३|| केकी पांशुला च स्त्री केतकः क्रककच्छदः । अशोको वजुलः पुंसि स्यात्पुंनागे तुङ्गकेसरौ ॥२४॥ झिंटी सैरीयकः सैव रक्तः कुरुर्वको मतः । दासी वाणाद्वयो रार्तगलो नीला भवेद्व्यदि ॥ २५ ॥ महासहा तथाssम्लानो झिण्टी भेदे बुधैःस्मृतौ । पीते कुरूण्टकः शोणे भवेत्कुरैवकः स च ॥ २६ ॥ बन्धुजीवोज्वरनश्च बन्धुको वन्धुजीवकः । पारिजातो निम्बभेदे ओड्रपुष्पे जपेाजवा ॥ २७॥
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पु० । (१०) बडहर के तीन नाम लिकुच १ लकुच २ डहु ३ पु० । (११) केतकी पुष्प के चार नाम - केतकी १ पांसुला २ स्त्री० केतक ३, कककच्छद ४ पुं० । (१२) अशोकवृक्ष के दो नामअशोक १ वज्जुल २ पु० । (१३) पुंनाग के तीन नाम-पुंनाग १ तुङ्ग २ केसर ३ पुं० ।
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हिन्दी - १ झिटी के सामान्य दो नाम - झिण्टी १ लो० सैरीयक ( २ ) पु० | २ रक्त कुरवक का एक नाम-कुरवक १ पु० (३) नीलकुरवक के तीन नाम - दासी १ खो०, बाणा २ पु० स्त्री आर्तगल ३ पु० । ( ४ ) कटसरेया (जो कि झिटी का भेद हैं) के सामान्य दो नाम - महासहा १ स्त्रो०, अम्लान २ पु०। (५) पीत झिण्टी के एक नाम - कुरूण्टक १ पु० । (६) रक्त झिण्टी के एक नाम - कुरवक १ पु० । (७) दोपहरिया पुष्प के चार नाम - बन्धुजीव १, ज्वरप्न २ बन्धूक ३, बन्धुजीवक ४ पु० । (८) निम्बविशेष
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