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द्वितीयकाण्डम्
वनस्पतिवर्ग:४ मधुारो मधुकः स्यात् पीलु गुंडपलो मतः । इम आक्षोट आखोट आखरोटः पुमंसकाः ॥३६॥ गुवाकः पूग गवाकौं क्रमुकः खपुरः क्रमुः । तृणराजः तलस्तालः कपित्थं तु कपिप्रियम् ॥३७॥ कारुकः कर्मरङ्गः स्यात् करम्लः करमर्दनः। विकतो यज्ञवृक्षो ग्रन्थिलः स्वादुकण्टकः ॥३८॥ राजादनं प्रियाकोऽपि प्रियाल: क्षीरिणीतरौ । म्रियेतकफलं सूत्वा तदनन्नासमुच्यते ॥३९॥
सीताफलं स्यादातृप्यं लवनी स्त्री मृदुफलम् । ४ पु० । (९) अखरोट के तीन नाम-आक्षोट१, आखोट२, आखरोट३ पु० । (१०) सुपारी(सोपारी) के छ नाम-गुवाक१, पूग२, गूवाक३, क्रमुक ४, खपुर५, क्रमु ६ पु० ।
हिन्दी-(१) तालवृक्ष के तीन नाम-तृणराज १, तल२, ताल ३, पु० । (२) कैंथ के दो नाम–कपित्थ१, कपिप्रिय२, नपुं० । (३) कमरख (जिसके फल खट्टे फॉक वाले लम्बे२ होते हैं) के दो नाम-कारुक१, कर्मरङ्ग२ पु० । (४) करोंदा के दो नाम-कराम्ल १, करमर्दन२ पु० । (५) विकंकत (कटेर) के चार नामविकंकत२, यज्ञवृक्ष२, ग्रन्थिल ३, स्वादुकण्टक४ पु० । (६) खीरी (रायण) के चार नाम-राजादन१ पु० नपुं० प्रियाल२, पियाल३ पु०, क्षीरिणो ४ स्त्री० । (७) अनानास (जिसका एक ही फल होता है और उसो फल के ऊपर दूसरा झाड़ रहता है) का एक नामअनन्नास२ नपुं० । (८) सरीफा (आँता) के पांच नाम-सोता
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