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द्वितीयकाण्डम्
नगरवर्गः २
लघुमिठिका ग्रामा वेशो वेश्यालयस्थलम् । द्विकानमापणो हट्टो विणिः पण्यवीथिका ॥३॥ प्रतोली विशिखा रथ्या वैः स्यान्मृच्चयोऽस्त्रियाम् । कृत्रिमेवेष्टने साल: प्राकारो वरणस्तथा ॥४॥ प्राचीरं चैव प्राचीनं प्रान्ततो वृत्तिरिष्यते।।
कुंडथेभितिः स्त्रियामन्त-यस्तास्थन्येडूक मुच्यते ॥५॥ (अढाई २ कोश तक ग्रामान्तर रहीत) द्रोणमुख (जलस्थल मार्ग स्थल) आश्रम (तापसादि निवास) संबाह (कृषिवल द्वारा निर्मित धान्य रक्षा स्थल दुर्ग आदि) संनिवेश (सार्थवाहादि निवास स्थल) मादि हैं नपुं० । (६) छोटे ग्राम को-'ग्रामठिका' कहते हैं स्त्री० (७) वेश्यालय का एक नाम-'वेश' पु० । (८) दुकानों के तीन नाम-द्विकान १ नपुं०, आपण २ हट्ट ३ पु० । (९) दुकान पतियों के दो नाम-विपणि (विपणी) १, पण्यवीथिका २ स्त्री०। (१०) ग्राम वाले मध्यमार्ग के तोन नाम-प्रतोली १ विशिखा २ रथ्या ३ स्त्री० । (११) परिखा आदि के मिट्टी ढेर का एक नामवप्र १ अस्त्री।
हिन्दी-(१) कृत्रिम घिरावे (कोट) के तीन नाम-साल १, प्राकार २, वरण ३ पु०। (२) प्रामादि के अन्त में कण्टक आदि वेष्टन (बाड) के तीन नाम-प्राचीर १, प्राचीन २ नपुं०, वृत्ति ३ स्त्री० । (३) भित्ति के दो नाम-कुड्य १ नपुं०, भित्ति २ स्त्री० । (४) अस्थि आदि से निर्मित्तभित्ति को 'एडूक' कहते हैं नपुं० । (५) गृह के तेरह नाम -गृह १, वेश्म २ (वेश्मन्), भवन
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