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रही है । कल्पना के आलोक में बरसात की कल्पना करनी है। संपूर्ण संसारवन में पाँच आश्रवों के बादल बरस रहे हैं! पाँच आश्रव के बादल ! जानते हो इन बादलों को ? मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, अशुभ योग और प्रमाद ये पाँच आश्रव हैं और वे घनघोर बादल हैं, बरसते बादल हैं । अनंत जीव इस वर्षा में भीग रहे हैं ।
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यह तात्त्विक दर्शन है । तत्त्वदृष्टि से दर्शन करना है । मिथ्यात्व बरस रहा है, अविरति बरस रही है, कषाय बरस रहे हैं, मन-वचन काया के अशुभ योग बरस रहे हैं और प्रमाद बरस रहा है ! ऐसी बरसात का दर्शन करना है । करोगे न ? अवश्य करना है। हम भव-वन में हैं, भटक रहे हैं... और आश्रवों की वर्षा में भीगे जा रहे हैं ! आश्रवों की यह वर्षा जीवों को मात्र भिगोती है, ऐसा नहीं है, इस वर्षा के कुछ निश्चित दुष्प्रभाव होते हैं !
* मिथ्यात्व की वर्षा से भीगनेवाला जीव आत्मतत्त्व को मानता नहीं, जानता नहीं और स्वीकारता नहीं है । देह को ही, शरीर को ही आत्मा मानता है ! वैसे, जो परमात्म-तत्त्व होता है, वास्तविक होता है, उसका स्वीकार नहीं करना है, परंतु जो वास्तव में परमात्म-तत्त्व नहीं होता है, उसको परमात्मा मानता है ! जो सही रूप से गुरुतत्त्व होता है, उसको गुरु नहीं मानता है, जो वास्तव में गुरु नहीं होते, उसको गुरु मानता है ! जो धर्मतत्त्व नहीं होता है उसको धर्म मानता है और जो सच्चा धर्मतत्त्व है, उसका स्वीकार नहीं करता है। जैसी चाहिए वैसी आस्तिकता नहीं होती है, जैसा चाहिए वैसा भववैराग्य नहीं होता है, नहीं मोक्षराग होता है... दुःखी जीवों के प्रति तीव्र करुणा नहीं होती है और कषाय भी उपशान्त नहीं होते हैं ! मिथ्यात्व की वर्षा में भीगनेवाले जीवों की यह परिस्थिति होती है ।
* दूसरी 'अविरति' की वर्षा होती है। अविरति की वर्षा में भीगनेवाले जीवों में एक बहुत बड़ी विकृति आती है। उन जीवों को कोई छोटा-बड़ा व्रत लेने की, प्रतिज्ञा लेने की, नियम लेने की इच्छा नहीं होती है । व्रत ग्रहण करने का उत्साह ही पैदा नहीं होता है । वह व्रत - नियम की बात से घबराता है। हाँ, मिथ्यात्व की वर्षा से नहीं भीगनेवाला जीव, अविरति की वर्षा से भीगता है, तो वह व्रत - नियम की उपादेयता का स्वीकार करेगा, परंतु व्रत - नियम का स्वीकार कर पालन नहीं कर सकेगा ! 'मैं व्रत ग्रहण करूँ वैसा भावोल्लास ही प्रगट नहीं होता है ।'
* तीसरी वर्षा होती है कषायों की । क्रोध-मान- माया और लोभ की वर्षा,
शान्त सुधारस : भाग १
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