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52...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
चतुर्विध भेद- दिगम्बर परम्परा के भगवती आराधना में सामायिक के चार भेद बतलाए गए हैं- 1. नाम सामायिक 2. स्थापना सामायिक 3. द्रव्य सामायिक और 4. भाव सामायिक।28 __1. नाम सामायिक- निमित्त की अपेक्षा के बिना किसी व्यक्ति आदि का नाम सामायिक रखना, नाम सामायिक है।
2. स्थापना सामायिक- सर्व सावध का त्याग एवं तद्प परिणाम रखने वाली आत्मा के द्वारा सामायिक करते समय एकीभूत शरीर का जो आकार होता है उस आकार के समान होने से 'यह वही है' इस प्रकार चित्र, पुस्तक आदि में स्थापना करना, स्थापना सामायिक है।
3. द्रव्य सामायिक- द्रव्य सामायिक मुख्यत: दो प्रकार की होती है- (i) आगम द्रव्य और (ii) नो आगम द्रव्य।
द्वादशांगश्रुत (बारह अंग) के आद्य ग्रन्थ का नाम सामायिक है अर्थात आचारांग का दूसरा नाम सामायिक है। जो इस सामायिक श्रुत के अर्थ का ज्ञाता है, जिसे सामायिक नामक आत्म परिणाम का बोध है, किन्तु वर्तमान में उस ज्ञान रूप से परिणत नहीं है अर्थात उसका उपयोग उसमें नहीं हैं। उस व्यक्ति की आगम द्रव्य सामायिक है।
नोआगम द्रव्य सामायिक ज्ञायक शरीर, भव्य शरीर और तदव्यतिरिक्त के भेद से तीन प्रकार की है- (i) सामायिक के ज्ञाता का जो शरीर है वह भी सामायिक के ज्ञान में कारण है, क्योंकि आत्मा की तरह शरीर के बिना भी ज्ञान नहीं होता है। अत: ज्ञान सामायिक का कारण होने से त्रिकालवर्ती शरीर को नो आगम द्रव्य सामायिक कहते हैं। (ii) चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम विशेष से जो आत्मा भविष्य में सर्वसावध योग के त्यागरूप परिणाम वाला होगा उसे भावि-नोआगम द्रव्य सामायिक कहते हैं। (iii) जो चारित्र मोहनीय कर्म की क्षयोपशम अवस्था को प्राप्त है अर्थात जिस जीव के चारित्रमोह का क्षयोपशम हो चुका है वह सामायिक के प्रति कारण है, अत: उसे नोआगम तव्यतिरिक्त सामायिक कहते हैं। ___4. भाव सामायिक- भाव सामायिक भी दो प्रकार की कही गई है(i) आगम और (ii) नोआगम। मानसिक विचार रूप सामायिक आगम-भाव सामायिक है और सम्पूर्ण सावध योगों से विरक्त आत्मा के परिणाम नोआगम भाव सामायिक है।