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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ... 267
काल का यह परिमाण औत्सार्गिक समझना चाहिए, अपवाद रूप नहीं । जैन पद्धति की काल गणना के अनुसार सात प्राण का एक स्तोक, सात स्तोक का एक लव और सतत्तर (77) लव का एक मुहूर्त होता है अथवा 48 मिनट (एक मुहूर्त्त) में 3773 प्राण और एक मिनट में 78- प्राण होते हैं। इतने समय में लगभग उतने ही पद बोले जाते हैं।
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षडावश्यक में जो कायोत्सर्ग आवश्यक है उसमें चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान किया जाता है। इस सूत्र में सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं। एक उच्छ्वास परिमाण में एक चरण का ध्यान किया जाता है। एक चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान पच्चीस या सत्ताईस उच्छ्वासों में सम्पन्न होता है। प्रथम श्वास लेते समय मन में 'लोगस्स' कहा जायेगा और सांस को छोड़ते समय 'उज्जोअगरे ' कहा जायेगा। द्वितीय श्वास लेते समय 'धम्म' और छोड़ते समय 'तित्थयरे जिणे' कहा जायेगा। इस प्रकार चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग होता है।
= चार नमस्कार मन्त्र का स्मरण
अर्वाचीन परम्परा में चतुर्विंशतिस्तव के स्थान पर नमस्कार मन्त्र का भी कायोत्सर्ग किया जाता है। एक लोगस्स = चार नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हैं। यहाँ यह भी उल्लेख्य है कि एक लोगस्स करने से नमस्कार मन्त्र की चरण संख्या लोगस्ससूत्र की अपेक्षा अधिक होती है, जैसे - एक नमस्कार मन्त्र के 8 चरण हैं और चार नमस्कार मन्त्र के = 32 चरण होते हैं जबकि एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करने पर 25 चरण ही होते हैं। इस अपेक्षा से नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करने पर 7 श्वासोश्वास अधिक होते हैं, किन्तु परम्परा से एक लोगस्ससूत्र के बराबर चार नमस्कार मन्त्र का ही स्मरण करते हैं।
आदरणीय डॉ. सागरमलजी जैन के मतानुसार अभ्यास दशा और अनभ्यास दशा की अपेक्षा लोगस्ससूत्र के बराबर नमस्कारमन्त्र को स्वीकार किया गया है। नमस्कारमन्त्र अभ्यास साध्य होने से शीघ्रतापूर्वक स्मृत किया जा सकता है जबकि लोगस्ससूत्र का अभ्यास अपेक्षाकृत अल्प होने से उतना शीघ्र स्मरण नहीं किया जा सकता, अतः नमस्कारमन्त्र में निर्धारित श्वासोश्वास परिमाण से अधिक होने पर भी कालमान उतना ही होता है। इसलिए नमस्कारमन्त्र गिनने में दोष नहीं है ।
यहाँ दिवस, रात्रि,पक्ष, चातुर्मास एवं वर्ष भर में लगने वाले दोषों से निवृत्त होने के लिए कितने श्वासोश्वास का अथवा श्वासोश्वास परिमाण