Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 417
________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...359 प्रत्याख्यान के विकल्प भविष्य में हो सके ऐसे अनुचित आचरण का त्याग करना प्रत्याख्यान है अत: प्रत्याख्यान का मुख्य सम्बन्ध भविष्यकाल से है। यद्यपि तीनों कालों को विषय करके प्रत्याख्यान ग्रहण किया जाता है जैसे- 'अईअं निंदामि'अतीतकाल में अनुचित आचरण किया गया हो, तो उसकी निन्दा और गर्दा करता हूँ, 'पडुप्पन्नं संवरेमि' - वर्तमान काल में किए जा रहे अनुचित आचरण को रोकता हूँ और 'अणागयं पच्चक्खामि' - भविष्य काल में अनुचित आचरण का त्याग करता हूँ। इस प्रकार सभी प्रत्याख्यानों में भूतकाल की निन्दा, वर्तमान का संवर और भविष्य का प्रत्याख्यान, ऐसे त्रिकालविषयक प्रत्याख्यान होता है। अब विवेच्य यह है कि त्रिकालविषयक प्रत्याख्यान कितने प्रकार से ग्रहण किया जा सकता है? जैन विचारणा के अनुसार 147 प्रकार से प्रतिज्ञा ली जा सकती है। प्रत्याख्यान के मूल भंग 49 हैं, उन्हें तीनों कालों से जोड़ने पर 147 विकल्प होते हैं। दूसरे, इन विकल्पों को ग्रहण करने की नवकोटियाँ है। नवकोटियों में से किसी भी कोटि द्वारा प्रत्याख्यान ग्रहण किया जा सकता है। पच्चक्खाणभाष्य के अनुसार प्रत्याख्यान की नवकोटि और प्रत्याख्यान के 49 विकल्प निम्न प्रकार हैं (i) प्रत्याख्यान की नवकोटि- प्रत्याख्यान एक कोटि से नवकोटि पर्यन्त इस प्रकार लिये जाते हैं एक कोटि का प्रत्याख्यान- काया से करूंगा नहीं। दो कोटि प्रत्याख्यान- वचन से करूंगा नहीं, काया से करूंगा नहीं। तीन कोटि प्रत्याख्यान- मन से करूंगा नहीं, वचन से करूंगा नहीं, काया से करूंगा नहीं। चार कोटि प्रत्याख्यान- उक्त तीन कोटि पर्वक काया से कराऊंगा नहीं। पाँच कोटि प्रत्याख्यान- उक्त चार कोटि पूर्वक वचन से कराऊंगा नहीं। छ: कोटि प्रत्याख्यान- उक्त पाँच कोटि पूर्वक मन से कराऊंगा नहीं। सात कोटि प्रत्याख्यान- उक्त छह कोटि पूर्वक काया से अनुमोदन करूंगा नहीं। आठ कोटि प्रत्याख्यान- उक्त सात कोटि पूर्वक वचन से अनुमोदन करूंगा नहीं।

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