Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 453
________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...395 लेवाडं आयामाइ, इयर सोवीर-मच्छ मुसिण जलं। धोयण बहुल ससित्थं, उस्सेइम इयर सित्थविणा । प्रत्याख्यानभाष्य, गा. 24-28 74. पंचाशक प्रकरण, 5/12 75. पंचवस्तुक, गा. 515-516 76. पंचाशक प्रकरण, 5/13 77. वही, 5/14 78. (क) पंचाशक प्रकरण, 5/16-19 (ख) पंचवस्तुक, 517-528 79. पंचाशक प्रकरण, 5/21 80. (क) पंचाशक, 5/24 (ख) पंचवस्तुक, 527-528 81. मण-वयण-काय मणवय, मणतणु-वयतणु-तिजोगि सग सत्त । कर कारणु मइ दु ति जुइ, तिकालि सीयाल भंगसयं । प्रत्याख्यान भाष्य, भा. 42 82. उग्गए सूरे अ नमो, पोरिसि पच्चक्ख उग्गए सूरे । सूरे उग्गए पुरिमं, अभत्तटुं पच्चक्खाइ ति ॥ नभाष्य, गा. 4 83. भणइ गुरू सीसो पुण, पच्चक्खामित्ति एव वोसिरइ । उवओगित्थ पमाणं, न पमाणं वंजणच्छलणा॥ वही, गा. 5 84. पढमे ठाणे तेरस, बीए तिनि उ तिगाइ (य) तइयंमि । पाणस्स चउत्थंमी, देसवगासाइ पंचमए । नमु पोरिसि सड्ढा, पुरि-मवड्ड अंगुट्ठमाइ अडतेर । निवि विगइं-बिल तियतिय, दु इगासण एगठाणाई । __ प्रत्याख्यान भाष्य, गा. 6-7 85. पढममि चउत्थाई, तेरस बीयंमि तइय पाणस्स। देसावगासं तुरिए, चरिमे जहसंभवं नेयं । वही, गा. 8

Loading...

Page Navigation
1 ... 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472