Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 455
________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ... 397 101. भत्तोसं दन्ताई खज्जूरं, नालकेर दक्खादी । कक्कडिगंबग फणसाइ, बहुविहं खाइमं णेयं ॥ 102. दंतवणं तंबोलं चित्तं, तुलसी कुहेड गाई य। महुपिप्पलि सुंठाई, अणेगहा साइमं होइ ॥ वही, 5/29 वही, 5/30 103. धर्मसंग्रह - अनु. पन्यास पद्मविजय, भा. 2, पृ. 200-2-03 104. चउहाहारं तु नमो, रत्तिंपि मुणीण सेस तिय चउहा । निसि पोरिसि पुरिमेगा-सणाइ सड्डाण दुतिचउहा ॥ 107. (क) आवश्यकचूर्णि, पृ. 319 105. रोग आदि प्रबल कारण उपस्थित होने पर ही पोरिसि आदि प्रत्याख्यान दुविहार पूर्वक होते हैं, किन्तु यह व्यवहार मार्ग नहीं है, अपवाद मार्ग है। श्राद्धविधि टीका, उद्धृत, धर्मसंग्रह, भा. 2 पृ. 193 106. संकेअपच्चक्खाणं, साहूणं रयणि भत्त वेरमणं । तह य नवकार सहिअं, नियमेण चउव्विहाहारं ॥ यतिदिनचर्या, देवसूरि, गा. 50 वही, गा. 12 (ग) प्रवचनसारोद्धार, गा. 217 (घ) प्रत्याख्यान भाष्य, गा. 29 108. (क) प्रवचनसारोद्धार, 4 / 227-233 (ख) खीरंदहि णवणीयं, घयंतहा तेल्लमेव गुडमज्जं । महु मंसं चेव तहा, उग्गाहिमगं च विगईयो । पंचवस्तुक, 371 (ख) प्रत्याख्यान भाष्य, 30-36 109. अह पेया दुद्धट्टी, दुद्धावलेही य दुद्धसाडी य। पंच य विगयगयाई, दुद्धंमी खीर सहियाइं ॥ अंबिल जुअंमि दुद्धे, दुद्धट्टी दक्खमीस रद्धमि । पय साडी तह तंदुल, चुण्ण य सिद्धमि अवलेही ॥ प्रवचनसारोद्धार, 4/227-228

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