Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 457
________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...399 118. सक्किरिया-विरहाओ, न इच्छिय संपावयंति नाणं ति। मग्गण्णू वाऽचेट्ठो वाय-विहीणोऽहवा पोओ। विशेषावश्यकभाष्य, 1144 119. संभोग-पच्चक्खाणेणं आलम्बणाई खवेइ... उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । उत्तराध्ययनसूत्र, 29/34 120. उवहि-पच्चक्खाणेणं अपलिमन्थं जणयइ । निरूवहिए णं जीवे निक्कंखे, उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सइ । वही, 29/35 121. आहार-पच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ...संकिलिस्सइ । वही, 29/36 122. कसाय-पच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ । वही, 29/37 123. जोग-पच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ...पुव्वबद्धं च निज्जरेइ । वही, 29/38 124. सरीर-पच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणतणं निव्वत्तेइ... परमसुही भवइ।। वही 29/39 125. सहाय-पच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ...संजम बहुले... यावि भवइ । वही, 29/40 126. भत्त-पच्चक्खाणेणं अणेगाइं भवसयाइं निरूम्मइ। वही, 29/41 127. सब्भाव-पच्चक्खाणेणं अनियट्टि जणयइ..सव्वदुक्खाणमन्तं करे।।। वही, 29/42 128. भगवतीसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/5/सू. 26 129. गुणधारणरूवेणं, पच्चक्खाणेण तव-इआरस्स। विरियायारस्स पुणो, सव्वेहिं वि कीरए सोही ॥ चतुःशरण प्रकीर्णक, गा. 7 130. पच्चक्खाणमिणं सेविऊणं, भावेण जिणवरूद्दि । . पत्ता अणंतजीवा, सासय-सुक्खं अणाबाहं ।। प्रत्याख्यानभाष्य, 48 131. भगवतीसूत्र, 7/2/सू. 1-2

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