Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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394... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में पंच चउरो अभिग्गहि, निव्विइए अट्ठ नव य आगारा । अप्पाउरणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥
(क) प्रवचनसारोद्धार, गा. 203-205
दो नवकारि छ पोरिसी, सग पुरिमड्ढे इगासणे अट्ठ। सत्तेगठाणि अंबिलि, अट्ठ पण चउत्थि छप्पाणे ॥ चउ चरिमे चउभिग्गहि, पण पावरणे नवट्ठ निव्वीए आगारू क्खित्तविवे- गमुत्तु दव्वविगइ नियमिट्ठ ॥
(ख) प्रत्याख्यान भाष्य, गा. 16-21
(ग) पंचाशक प्रकरण, 5/8-11
आवश्यक हारिभद्रीय टीका पत्र, 849
64. न आभोगोऽनाभोगः-अत्यन्तविस्मृतिरित्यर्थः।
65. आवश्यकचूर्णि, 2 पृ. 315
66. प्रत्याख्यान भाष्य, गा. 25 का विशेषार्थ
67. गुरुणामभ्युत्थानार्हत्वादवश्यं भुञ्जानेनाऽप्युत्था नंं कर्त्तव्यमिति, न तत्र प्रवचनसारोद्धार, द्वार 4 की टीका
प्रत्याख्यानभङ्गः।
68. परिठावण विहिगहिए ।
69. पंचाशक, गा. 5/9 की अभयदेव टीका, पत्र 93
73. विस्सरणमणाभोगो,
प्रत्याख्यान भाष्य, गा. 26
70. प्रत्याख्यान भाष्य, गा. 27
71. आवश्यकनिर्युक्ति, गा. 1608
72. प्रतीत्य सर्वथा रूक्षं मण्डकादि-कमपेक्ष्य मृक्षितं स्नेहितम् ।
पंचाशक, गा. 11 की अभयदेव टीका, पत्र 94 सहसागारो सयं मुहपवेसो ।
पच्छन्नकाल मेहाई, दिसि विवज्जासु दिसिमोहो ।। साहुवयण उग्घाड़ा-पोरिसि, तणुसुत्थया संघाइकज्जमहत्तर, हत्थ वंदाइ आउंटण मंगाणं, गुरु पाहुण साहु गुरु अभुट्ठाणं । परिठावण विहिगहिए, जईण पावरणि कडिपट्टो ॥
समाहिसि ।
सागारी ॥
खरडिय लूहिय डोवाई, लेव संसट्ठ डुच्च मंडाई | उक्खित्त पिंड विगईण, मक्खियं अंगुलीहिं विणा ॥
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