Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 450
________________ 392...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में 32. सा पुण सद्दहणा जाणणा य, विणयाणु भासणा चेव । अणुपालणा-विसोही, भावविसोही भवे छट्ठा । (क) आवश्यकनियुक्ति, 1586 (ख) पंचाशक प्रकरण, 5/5 33. पंचविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ता तं जहा- सद्दहणसुद्धे, विणयसुद्धे, अणुभासणासुद्धे, अणुपालणासुद्धे, भावसुद्धे। स्थानांगसूत्र, 5/3/221 34. किदियम्म उवचारिय, विणओ तह णाणदंसणचरित्ते । पंचविधविणयजुत्तं, विणयसुद्धं हवदि तं तु॥ मूलाचार, 7/642 35. थंभा कोहा अणाभोगा, अणापुच्छा असंतई। परिणामओ असुद्धो, अवाउ जम्हा विउ पमाणं ॥ आवश्यकभाष्य, 253 36. मूलगुण उत्तरगुणे सब्वे देसे य तह य सुद्धीए। पच्चक्खाणं विहिन्नू, पच्चक्खाया गुरु होइ । आवश्यकनियुक्ति, 1614 37. किइकम्माइ विहिनू उवओगपरो अ असढभावो अ। संविग्गथिरपइन्नो, पच्चक्खाविंतओ भणिओ । वही, 1615 38. (क) इत्थं गुण चउभंगो जाणगइअरंमि गोणिनाएणं । सुद्धासुद्धा पढमंतिमा, उ सेसेसु अ विभासा ॥ वही, 1616 पंचाशक प्रकरण, 5/6 (ग) जाणगो जाणगसगासे, अजाणगो जाणग सगासे, जाणगो अजाणगसगासे, अजाणगो अजाणग सगासे। प्रवचनसारोद्धार, द्वार 4 की टीका, पत्र 114 39. प्रत्याख्यानं यदासीत्तत्, करोति गुरुसाक्षिकम् । विशेषेणाथ गृह्णाति, धर्मोऽसौ गुरुसाक्षिकम् ।।1।। प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 107 40 वही, पृ. 107 (ख)

Loading...

Page Navigation
1 ... 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472