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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...371
कि उसके बारह व्रत आदि में कहीं दोष तो नहीं लगे हैं ? गृहीत मर्यादा का उल्लंघन या अतिक्रमण तो नहीं हुआ है ? इस प्रकार का चिन्तन करने से प्रत्याख्यान का सम्यक् परिपालन होता है, अन्यथा नहीं। दूसरी दृष्टि से यह कह सकते हैं कि प्रतिक्रमण क्रिया प्रत्याख्यानों की समीक्षा है। यदि अतिक्रमण हुआ हो तो उससे पुनः व्रत में स्थिर होने की यह महत्त्वपूर्ण क्रिया है अतः प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान का रक्षक है।
4. प्रत्याख्यान शुद्धि एवं जागरूकता में हेतुभूत- प्रतिक्रमण कृत दोषों से निवृत्ति एवं आत्मशुद्धि की प्रभावपूर्ण प्रक्रिया है । यदि दोष शुद्धि या अपराध शुद्धि न की जाए तो, यह अन्तर्चेतना को विषाक्त एवं साधकीय जीवन को विनष्ट कर सकता है, इसलिए स्वयं के द्वारा लगे हुए दोषों की आत्म निन्दा अवश्य करनी चाहिए। यह प्रतिक्रमण है तथा इस उपक्रम से प्रत्याख्यान पालन में जागरूकता-अप्रमत्तता बनी रहती है ।
5. पारस्परिक पूरकता में हेतुभूत- यह महत्त्वपूर्ण चिन्तन है कि प्रत्याख्यान न हो तो प्रतिक्रमण किसका किया जाए और मर्यादा के अतिक्रमण का प्रतिक्रमण न किया जाए तो प्रत्याख्यान कैसा? इस प्रकार दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रतिक्रमण से प्रत्याख्यानों की सार्थकता है और प्रत्याख्यानों से प्रतिक्रमण की सार्थकता है। जब तक जीवन में दोष लगने संभव है तब तक प्रतिक्रमण एवं प्रत्याख्यान आवश्यक है। वीतराग मार्ग पर अग्रसर होने के लिए भी प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान - उभय क्रियाओं का संयोग अनिवार्य है।
6. अतिचार निवृत्ति में हेतुभूत- प्रतिक्रमण बार-बार दोषों का सेवन न हो, इस लक्ष्य से किया जाता है। प्रत्याख्यान का भी यही लक्ष्य है। सामायिक आदि से आत्मशुद्धि की जाती है, किन्तु आसक्ति रूपी तस्करराज अन्तर्मानस में प्रविष्ट न हो, इसके लिए प्रत्याख्यान आवश्यक है। मलिन वस्त्र को एक बार स्वच्छ करना प्रतिक्रमण है और स्वच्छ वस्त्र पुनः मलिन न हो जाए, तद्हेतु वस्त्र को कपाट आदि में रख देना प्रत्याख्यान है । इस प्रकार प्रत्याख्यान प्रतिक्रमण की लक्ष्य प्राप्ति में और प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान की सिद्धि में सहायक हैं।95
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रत्याख्यान से प्रतिक्रमण परिपुष्ट होता है। मूलगुणों एवं उत्तरगुणों के समाचरण से प्रतिक्रमण अनुष्ठान अधिक पुष्ट बनता है। अहिंसादि मूलगुण और दिग्व्रत एवं शिक्षाव्रत आदि उत्तरगुण