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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...361
काया से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं 4. मन से, वचन से करूंगा नहीं, अनुमोदुंगा नहीं 5. मन से, काया से करूंगा नहीं, अनुमोदुंगा नहीं 6. वचन से, काया से करूंगा नहीं, अनुमोदुंगा नहीं 7. मन से, वचन से कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 8. मन से, काया से कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 9. वचन से, काया से कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं ।
दो करण - तीन योग = तीन भंग - 1. मन-वचन-काया से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं 2. मन-वचन-काया से करूंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 3. मन-वचन-काया से कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं ।
तीन करण - एक योग = तीन भंग- 1. मन से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 2. वचन से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 3. काया से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं ।
तीन करण- दो योग = तीन भंग- मन से, वचन से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 2. मन से, काया से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं 3. वचन से, काया से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं ।
तीन करण - तीन योग = एक भंग- मन से, वचन से, काया से करूंगा नहीं, कराऊंगा नहीं, अनुमोदन करूंगा नहीं ।
इस प्रकार 9+9+3+9+9+3+3+3+1 मिलकर कुल उनपचास विकल्प होते हैं। फिर इन भंगों की तीन काल के साथ गणना करने पर 49×3=147 विकल्प होते हैं। 81
प्रत्याख्यान पाठ की उच्चारविधि
प्रत्याख्यान के नवकारसी आदि मुख्य दस प्रकार बतलाये गये हैं। ये प्रत्याख्यान प्रतिज्ञा पाठ पूर्वक उच्चरित ( स्वीकृत ) किये जाते हैं। यहाँ उच्चारविधि से तात्पर्य - प्रतिज्ञा पाठ के प्रारम्भिक पाठांश या वाक्यांश से है। पच्चक्खाण भाष्य के अनुसार प्रतिज्ञा - पाठों का प्रारम्भ भिन्न-भिन्न चार प्रकार से होता है। इसे ही उच्चारविधि कहा गया है। प्रस्तुत भाष्य में उच्चारविधि के निम्न दो प्रकार निरूपित हैं
प्रथम प्रकार - 'उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ' (मि) - यह प्रथम उच्चारविधि है।