Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 413
________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...355 तो प्रत्याख्यान अभग्न रहता है इस तरह की जानकारी बनी रहे। कुछ आचार्यों की मान्यतानुसार लेपालेप, उत्क्षिप्तविवेक, गृहस्थसंसृष्ट, पारिष्ठापनिकाकार और चोलपट्टागार- ये पाँच आगार साधु के लिए ही है, गृहस्थ के लिए नहीं। प्रत्याख्यान में आगार रखने का प्रयोजन प्रत्याख्यान गुण प्राप्ति एवं दोष विमुक्ति का अमोघ उपाय है, अन्तिम लक्ष्य की संसिद्धि का अनन्य हेतु है और विरति मार्ग पर निरन्तर अग्रसर होने के लिए विशिष्ट नियम रूप है। आचार्य हरिभद्रसूरिजी प्रत्याख्यान में आगार (अपवाद) रखने का प्रयोजन बतलाते हुए कहते हैं कि नियम भंग करने से अशुभ कर्मबन्ध आदि अनेक दोष लगते हैं क्योंकि उसमें तीर्थंकर आज्ञा की विराधना होती है। वहीं इसके विपरीत कितनी ही बार छोटे नियमों का पालन करने से भी कर्म-निर्जरा रूप महान लाभ हो जाता है, यदि उन प्रत्याख्यानों के प्रति विशुद्ध एवं शुभ अध्यवसाय हो।74 धर्म के क्षेत्र में भी लाभ और अलाभ का अवश्य विचार करना चाहिए। जिसमें अधिक लाभ हो, वैसा करना चाहिए। एकान्त आग्रह रखने से हानि होती है। इसीलिए प्रत्याख्यान में आगार रखे गये हैं। प्रत्याख्यान में आगार रखने का दूसरा प्रयोजन यह है कि संसार चक्र में परिभ्रमण करते हुए इस जीव ने प्रमाद दशा का खूब अभ्यास किया है, प्रमाद का अतिशय अभ्यास होने के कारण गृहीत व्रत आदि में स्खलना होना स्वाभाविक है, जबकि आगार रखने से अतिचार या दोष लगने की संभावना नहींवत रह जाती है। तीसरा कारण यह है कि प्रत्याख्यान भंग से आज्ञा भंग, अनवस्था, मिथ्यात्व आदि दोष लगते हैं तथा आज्ञाभंग आदि दोषों से मनुष्य जन्मादि विफल होते हैं, जबकि पहले से रखी गई छूट से आज्ञाभंग आदि दोष की संभावना न्यून हो जाती है। प्रमादी की दीक्षा कैसे? यहाँ कोई प्रश्न करता है कि नवकारसी आदि जैसे छोटे प्रत्याख्यानों का भी बिना आगार के पालन नहीं हो सकता है, तब जो जीव प्रमादी हो, उसकी दीक्षा कैसे हो सकती है? इसका समाधान करते हुए कहा गया है कि प्रमादी जीवों की दीक्षा चारित्र परिणाम से होती है। दूसरे, चारित्र

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