________________
कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...293 करते हैं। यह कायोत्सर्ग भाव धारा की शुद्धि के लिए आवश्यक है। 7. जिनशासन की सेवा-शुश्रुषा करने वाले, शान्ति देने वाले, सम्यक्त्वी
जीवों को समाधि पहुँचाने वाले देवी-देवता की आराधना करने के लिए, दोषों के परिहार के लिए, क्षुद्र-उपद्रव का निवारण करने के लिए, चतुर्विध संघ रूप तीर्थ की उन्नति करने के लिए, गुरुवन्दन आदि के लिए भी कायोत्सर्ग किए जाते हैं।75
स्पष्ट है कि जैन परम्परा में अनेक प्रयोजनों से कायोत्सर्ग किया जाता है। धर्ममूलक प्रत्येक क्रिया कायोत्सर्ग पूर्वक ही प्रारम्भ और समाप्त होती है। दिगम्बर परम्परा में भी एक अहोरात्रि में 28 कायोत्सर्ग किए जाते हैं। कायोत्सर्ग के लाभ
कायोत्सर्ग दु:खमुक्ति एवं सुप्त शक्तियों को अनावृत्त करने का सशक्त उपक्रम है। उत्तराध्ययनसूत्र में इसके सुपरिणामों का निरूपण करते हुए भगवान महावीर गौतमस्वामी द्वारा पूछे गये प्रश्न के जवाब में कहते हैं कि कायोत्सर्ग के द्वारा आत्मा अतीत और वर्तमानकाल के अतिचारों से विशुद्ध बनता है। अतिचारों से शुद्ध होने के बाद साधक का मन अत्यन्त आनन्दित और हल्का हो जाता है। उसके बाद प्रशस्त ध्यान में लीन होकर सुखपूर्वक विचरण करता है।76 __ कायोत्सर्ग का तात्विक अर्थ- 'काया का त्याग' नहीं है अपितु काया के अभिमान का, काया की अनवरत ममता का त्याग है। सुख का मूल साधन त्याग है।
इस आवश्यक से पाप प्रवृत्ति का निरोध होता है और चिरस्थायी चिदानन्द में आत्मा का वास होता है।
• कायोत्सर्ग का मूल उद्देश्य समाधि प्राप्त करना है, जो संसार से ममता घटने या हटने पर ही संभव है।
• व्रण का अर्थ है घाव। संयम की आराधना में प्रमाद वश लगने वाले अतिचार या दोष आध्यात्मिक व्रण हैं अर्थात वे संयम रूप शरीर के घाव है।
जिस प्रकार मरहम-दवा आदि से शारीरिक व्रण या घाव की चिकित्सा की जाती है उसी प्रकार कायोत्सर्ग रूप औषध के प्रयोग से आध्यात्मिक व्रण या दोष का निराकरण किया जाता है अत: इसे व्रण-चिकित्सा कहते हैं।