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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...339
विशेषार्थ- आयंबिल और नीवि का प्रत्याख्यान पाठ समान ही है। नीवि प्रत्याख्यान में 'प्रतीत्यम्रक्षिक' इस नाम का आगार भी होता है। इस प्रकार आयंबिल में आठ एवं नीवि में नौ आगार होते हैं तिवि(हा)हार उपवास ___ उग्गए सूरे50 अब्भत्तटुं पच्चक्खामि। तिविहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, पाणहार पोरिसिं साड्डपोरिसिं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खामि। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा अच्छेण वा बहुलेवेण वा ससित्थेण वा असित्येण वा वोसिरामि।
अर्थ- सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक उपवास का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस प्रत्याख्यान में अशन, खादिम, स्वादिम तीन प्रकार के आहार का- 1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. पारिष्ठापनिकाकार 4. महत्तराकार और 5. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार- इन पाँच आगार पूर्वक पूर्णतया त्याग करता हूँ। ___पानी का एक प्रहर या डेढ़ प्रहर तक नमस्कार मन्त्र, मट्ठिसहियं एवं निम्न आगार पूर्वक प्रत्याख्यान (त्याग) करता हूँ- 1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. प्रच्छन्न काल 4. दिशामोह 5..साधु वचन 6. महत्तराकार 7. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार। पानी के आगार- 8. लेप 9. अलेप 10. अच्छ 11. बहुलेप 12. ससिक्थ और 13. असिक्थ है।51 चउवि(हा)हार उपवास
उग्गए सूरे अभत्तटुं पच्चक्खामि, चउब्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। __ अर्थ- सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक उपवास का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस प्रत्याख्यान में अशन,पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहारों का- 1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. पारिष्ठापनिकाकार 4. महत्तराकार और 5. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार- उक्त पाँच आगार पूर्वक त्याग करता हूँ।52