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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...341 अभिग्रह प्रतिज्ञासूत्र
अभिग्गहं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।
अर्थ- मैं अभिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस प्रत्याख्यान में (संकल्पित अभिग्रह पूर्ति तक) अशन, पान, खादिम और स्वादिम- इन चारों प्रकार के आहारों का निम्न चार आगार (अपवाद) पूर्वक त्याग करता हूँ।54
1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. महत्तराकार और 4. सर्वसमाधि-प्रत्ययाकार।
विशेषार्थ- गंट्ठिसहियं, मट्ठिसहियं, उच्छवाससहियं, अंगुष्ठसहियं आदि सांकेतिक प्रत्याख्यान एवं मुनियों के भिक्षाचर्या सम्बन्धी विशिष्ट संकल्प अभिग्रह रूप होते हैं। इन स्थितियों में अभिग्रहसूत्र का उच्चारण करते हैं।
__ अभिग्रह धारण करते समय उपर्युक्त पाठ के द्वारा प्रत्याख्यान करना चाहिए।
अभिग्रह की साधना कठिन है अत: अपनी शक्ति का विचार करके अभिग्रह धारण करना चाहिए।
गंठिसहियं आदि का प्रत्याख्यान करते समय 'अभिग्गह' के स्थान पर अवधारित प्रत्याख्यान का नामोच्चारण करें। जैसे- गंठिसहियं पच्चक्खामि, मुट्ठिसहियं पच्चक्खामि वगैरह। सायंकालीन प्रत्याख्यान
दिन के अन्त में पाणहार, चउव्वि(हा)हार, तिवि(हा)हार, दुवि(हा)हार आदि प्रत्याख्यान ग्रहण किए जाते हैं। वे प्रतिज्ञा पाठ निम्न हैं
पाणहार प्रतिज्ञासूत्र- एकासन, बीयासन, एकलठाणा, आयंबिल, नीवि और तिविहार उपवास में पानी पीने वालों को तथा छट्ठ आदि का प्रत्याख्यान करने वालों को सूर्यास्त से पूर्व पाणहार का प्रत्याख्यान करना चाहिए।
पाणहार-दिवसचरिमं पच्चक्खामि। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागरेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।
अर्थ- दिन के शेष भाग से दूसरे दिन सर्योदय तक के लिए पानी का1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. महत्तराकार और 4. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार- उक्त चार आगारों की छूट रखते हुए सर्वथा त्याग करता हूँ।55