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340...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
विशेषार्थ- यदि उपवास में पानी नहीं पीना हो, तो चउविहाहार का प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिए तथा पानी पीना हो, तो तिविहाहार उपवास का प्रत्याख्यान करना चाहिए।
पं. सुखलालजी का कहना है कि यदि प्रात:काल से ही चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक उपवास का प्रत्याख्यान करना हो तो 'पारिट्ठावणियागारेणं' बोलना चाहिए। यदि प्रारम्भ में तिविहार उपवास का प्रत्याख्यान किया हो, परन्तु पानी न लेने के कारण सायंकाल के समय तिविहाहार से चउव्विहाहार उपवास करना हो, तो ‘पारिट्ठावणियागारेणं' नहीं बोलना चाहिए।
__ उपवास करने वाले को यदि पहले दिन और पिछले दिन एकाशन हो, तो उपवास के प्रत्याख्यानसूत्र में 'अभत्तटुं' के स्थान पर ‘चउत्थभत्तं अब्भत्तटुं' पाठ बोलना चाहिए। दो उपवास करने वाले को 'छट्ठभत्तं' और तीन उपवास करने वाले को 'अट्ठमभत्तं' पाठ बोलना चाहिए। इसी तरह उपवास की संख्या को दुगुना कर उसमें दो भक्त (भत्तं) मिलाने पर जितनी संख्या आए उतने भक्त कहने चाहिए,जैसे- चार उपवास में 'दस भत्तं' और पाँच उपवास में 'दुवालस भत्तं' आदि। पाणहार प्रतिज्ञासूत्र
पाणाहार पोरिसिं, साढ-पोरिसिं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खामि, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा असित्थेण वा वोसिरामि।
अर्थ- सूर्योदय से लेकर एक प्रहर या डेढ़ प्रहर तक पानी का मुट्ठिसहियं एवं निम्न आगार पूर्वक त्याग करता हूँ- 1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. प्रच्छन्न काल 4. दिशामोह 5. साधु वचन 6. महत्तराकार और 7. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार।
पानी की छूट रहती है इसलिए तत्सम्बन्धी छ: आगार रखता हूँ- 1. लेप 2. अलेप 3. अच्छ 4. बहलेप 5. ससिक्थ और 6. असिक्थ।53
विशेषार्थ- यदि प्रथम दिन छट्ठ आदि का प्रत्याख्यान कर लिया हो और दूसरे दिन पानी पीना हो, तो उस दिन प्रात:काल में पाणहार का प्रत्याख्यान करना चाहिए। बेले आदि की दीर्घ तपस्या करते हुए यदि प्रतिदिन उपवास का ही प्रत्याख्यान करें, तो पाणहार प्रत्याख्यान की जरूरत नहीं रहती है।