Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 404
________________ 346...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में 7. विगई-नीवि अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, (पिंडविगय सम्बन्धी) गृहस्थसंसृष्ट, उत्क्षिप्तविवेक, प्रतीत्यम्रक्षित, पारिष्ठापनिकाकार, मह त्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। 8. निर्विकृतिक (नीवि) 8 उत्क्षिप्तविवेक के सिवाय शेष पूर्ववत। 9. आयंबिल अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थसंसृष्ट, उत्क्षिप्त विवेक, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। 10. उपवास 5 अनाभोग, सहसाकार, पारिष्ठापनि काकार, महत्तराकार, सर्वसमाधि प्रत्ययाकार। 11. पाणहार (पानी सम्बन्धी) 6. लेप, अलेप, अच्छ, बहुलेप, ससिक्थ, असिक्थ। 12. अभिग्रह (धारणा सम्बन्धी) 4 अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। 13. प्रावरण (साधु के प्रत्याख्यान 5 अनाभोग, सहसाकार, चोलपट्टागार सम्बन्धी) महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार 14. दिवसचरिम-भवचरिम 4 अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार, देसावगासिक सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। यहाँ विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि उपरोक्त आगार पृथक-पृथक प्रत्याख्यान की अपेक्षा कहे गये हैं किन्तु पौरुषी या साढपौरुषी पूर्वक एकाशना या बियासना करें, तो वहाँ पौरुषी के छ: और एकाशन के आठ- दोनों के संयुक्त आगार गिनने चाहिए। जैसे- तिविहार उपवास करें तो उपवास के पाँच और पानी के छ:- इस प्रकार द्वयुक्त आगार जानने चाहिए। प्रत्याख्यान के भेदोपभेद सम्बन्धी तालिका जैन साहित्य में प्रत्याख्यान के अनेक भेदोपभेद बतलाए गए हैं। सुधी वर्ग के लिए उसकी सारणी निम्न प्रकार है

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