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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ... 343
देशावगासिक प्रतिज्ञासूत्र
चौदह नियम धारण करने वालों को नवकारसी से पूर्व यह प्रत्याख्यान
अवश्य करना चाहिए।
देसावगासियं उवभोगं परिभोगं पच्चक्खाइ । अन्नत्थणा भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।।
अर्थ- देश से संक्षेप की गई उपभोग और परिभोग की वस्तुओं का 1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. महत्तराकार और 4. सर्वसमाधि प्रत्याकार - इन चार आगार पूर्वक त्याग करता हूँ। 59
प्रत्याख्यान पारणासूत्र
जैन अवधारणा में किसी भी प्रतिबद्ध नियम से मुक्त होने के लिए भी सूत्रपाठ बोला जाता है। नवकारसी आदि अद्धा प्रत्याख्यानों को पूर्ण करने का सूत्रपाठ निम्नानुसार है
उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं पोरिसिं साढपोरिसिं सूरे उग्गए पुरिमड्ड अवड्ड (गंठिसहिअं) मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाणं कयं (कर्यु) चउव्विहार आयंबिल, निव्वी, एगलठाण, एगासण, बियासण, पच्चक्खाण कयं (कर्यु) तिविहार पच्चक्खाणफासिअं, पालिअं, सोहिअं, तिरिअं, किट्टिअं, आराहिअं जं च न आराहिअं तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
अर्थ- सूर्य उदित होने के पश्चात 1. नवकारसी 2. पौरूषी 3. साढपौरूषी 4. पुरिमड्ड 5. अवड्ड 6. गंठिसहियं 7. मुट्ठिसहियं - इन प्रत्याख्यानों को चार प्रकार के आहार पूर्वक किया तथा 8. आयंबिल 9. नीवि 10. एगलठाणा 11. एकाशना 12. बियासना- इन प्रत्याख्यानों को तीन प्रकार के आहार पूर्वक किया। इस प्रकार उक्त प्रत्याख्यानों की आराधना 1. प्रत्याख्यान करने योग्य काल में विधिपूर्वक न की हो 2. गृहीत प्रत्याख्यान का बार-बार स्मरण न किया हो 3. अपने आहार में से गुरु आदि की भक्ति कर शेष बचे हुए आहार से निर्वाह न किया हो 4. प्रत्याख्यान का समय पूर्ण होने के पश्चात थोड़ा अधिक समय व्यतीत न किया हो 5. भोजन के समय भूल न हो जाए, इसलिए प्रत्याख्यान को पुनः याद न किया हो 6. आराधित- उक्त पाँच भावों की शुद्धि पूर्वक प्रत्याख्यान का पालन न किया हो तो तत्सम्बन्धी मेरा पाप (दुष्कृत) मिथ्या हो । 00