________________
प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...333 यह चतुर्भगी जानकार और अजानकार अथवा विधि ज्ञाता और विधि अज्ञाता की अपेक्षा भी समझी जा सकती है। जैसे गुरु प्रत्याख्यान विधि के ज्ञाता हो और शिष्य भी प्रत्याख्यान ग्रहण विधि से परिचित हो- इस तरह पूर्ववत चार विकल्प बनते हैं। ____ आचार्य भद्रबाहु ने इस सम्बन्ध में गौ का दृष्टान्त उल्लेखित करते हुए कहा है कि यदि मालिक और ग्वाला- दोनों ही गायों का परिमाण जानते हो तो मूल्य चुकाने और ग्रहण करने में सुविधा होती है।38 प्रत्याख्यान ग्रहण विधि
पूर्वाचार्यों के मतानुसार किसी तरह का शुभ संकल्प या प्रत्याख्यान देवगुरु और धर्म की साक्षी पूर्वक करना चाहिए। सर्वप्रथम रात्रि में लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण (रात्रिक प्रतिक्रमण) करते समय आत्मसाक्षी से नवकारसी आदि का प्रत्याख्यान करना चाहिए, फिर जिनालय में अरिहंत परमात्मा की साक्षी पूर्वक संकल्पित प्रत्याख्यान करना चाहिए। तदनन्तर उपाश्रय में विराजित सद्गुरु की साक्षी से (मुख से) प्रत्याख्यान करना चाहिए। इस प्रकार कोई भी शुभ संकल्प या प्रत्याख्यान आत्मसाक्षी, देवसाक्षी और गुरुसाक्षी पूर्वक करने योग्य होने से गुरु के समीप तो अवश्य करना चाहिए। कहा भी गया है कि जो प्रत्याख्यान पहले किया गया हो, उसे विशिष्ट कोटि का बनाने के लिए गुरु साक्षी से प्रत्याख्यान करना चाहिए।39 इस तथ्य का मूल्य बतलाते हुए किसी आचार्य ने कहा है
_ 'गुरुसक्खिओ हु धम्मो'- गुरु साक्षी ही निश्चय से धर्म है। इससे जिनाज्ञा का पालन होता है।40 श्रावकप्रज्ञप्ति में भी कहा गया है- प्रत्याख्यानी के परिणाम विशुद्ध होने पर भी गुरुसाक्षी पूर्वक प्रत्याख्यान करने से उसके परिणामों में दृढ़ता आती है, इसलिए प्रत्याख्यान की तरह, अन्य भी नियमोपनियम गुरु साक्षी पूर्वक ग्रहण करने चाहिए।41 वर्तमान में त्रिविध साक्षी से प्रत्याख्यान करने वाले साधक अल्प हैं। ____ आत्म साक्षी एवं देव साक्षी पूर्वक प्रत्याख्यान करने वाला बद्धांजलि युक्त होकर स्वयं ही प्रतिज्ञासूत्र का उच्चारण करें तथा गुरुसाक्षी से प्रत्याख्यान करते समय शिष्य हाथ जोड़कर अर्धावनत मुद्रा में खड़ा रहे और गुरु प्रतिज्ञासूत्र का उच्चारण करें।