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330...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
9. अभिग्रह- अमुक कार्य होने पर ही भोजन करूंगा अथवा बेला आदि संकल्पित दिनों की अवधि तक आहार ग्रहण नहीं करूंगा, इस प्रकार की प्रतिज्ञा करना, अभिग्रह प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान द्रव्य आदि चार प्रकार का संकल्प करते हुए किया जाता है। जैसे
द्रव्य से- अमुक आहार या अमुक कटोरी, चम्मच आदि से ही भिक्षा ग्रहण करूंगा।
क्षेत्र से- अमुक घर से...गली से...गाँव से ही भिक्षा लंगा।
काल से- अमुक समय में या भिक्षाकाल बीतने के पश्चात भिक्षा ग्रहण करूंगा।
भाव से- दाता खड़े-खड़े, बैठे-बैठे या अमुक मुद्रा में देगा, तो ही ग्रहण करूंगा।
पूर्वनिर्दिष्ट अनागत आदि दस प्रत्याख्यान में से आठवाँ परिमाणकृत प्रत्याख्यान एवं नौवाँ संकेत प्रत्याख्यान अभिग्रह प्रत्याख्यान में गिने जाते हैं।
10. निर्विकृतिक- विकृति अर्थात विकार। इन्द्रियों के विषयों को प्रबल करने वाले दूध-दहि, घृत-तेल, शक्कर-पकवान- ये छ: पदार्थ विगई कहलाते हैं। इनमें से एक-दो यावत छ: विगय का त्याग करना, विगई प्रत्याख्यान है तथा छ: विगय से निष्पन्न तीस प्रकार के पदार्थों का यथासम्भव त्याग करना, नीवि प्रत्याख्यान कहलाता है।
द्वितीय परिभाषा के अनुसार मन को विकृत करने वाली अथवा विगतिदुर्गति में ले जाने वाली विकृतियाँ जिसमें से निकल चुकी हों, ऐसा भोजन ग्रहण करना, निर्विकृतिक प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान विशोधि के स्थान
प्रत्याख्यान एक महत्त्वपूर्ण साधना है। पूर्वाचार्यों के अनुसार छह प्रकार की विशुद्धियों से युक्त धारण किया गया प्रत्याख्यान शुद्ध और निर्दोष होता है। वे शुद्धियाँ निम्नोक्त हैं___ 1. श्रद्धान शुद्धि- शास्त्रीय विधि के अनुसार पाँच महाव्रत एवं बारह व्रत आदि प्रत्याख्यानों के प्रति विशुद्ध श्रद्धा रखना, श्रद्धान विशुद्धि है।
2. ज्ञान शुद्धि- जिनकल्प, स्थविरकल्प, मूलगुण, उत्तरगुण एवं प्रात:काल आदि के प्रत्याख्यान का जैसा स्वरूप है उसे वैसा ही जानना, ज्ञान विशुद्धि है।