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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ... 325
साकार प्रत्याख्यान है तथा नक्षत्र आदि की अपेक्षा के बिना स्व रूचि से कभी भी उपवास आदि तप करना, अनाकार प्रत्याख्यान है | 24
7. परिमाणकृत - दत्ति, कवल, भिक्षा, गृह, द्रव्य आदि के परिमाण (मात्रा) पूर्वक आहार आदि का त्याग करना, परिमाणकृत प्रत्याख्यान है।
दत्ति प्रमाण - हाथ या पात्र में से जो भिक्षा सतत धाराबद्ध गिरे, वह एक दत्ति कहलाता है। भिक्षा देते हुए बीच में से धार टूट जाये और पुनः गिरे यह दूसरी दत्ति कहलाती है। इस प्रकार आहार पानी के विषय में दत्ति का परिमाण करना दत्ति परिमाण प्रत्याख्यान है ।
कवल प्रमाण - छोटा नीबू - परिमाण जितना ग्रास अथवा जितना ग्रास आसानी से मुँह में समा सके अथवा जिसे खाने पर मुख विकृत न बने उतना भोजन पिण्ड कवल कहलाता है। अमुक कवल परिमाण आहारादि ग्रहण करना, कवल परिमाण प्रत्याख्यान है। सामान्यतः पुरुष का आहार बत्तीस कवल परिमाण और स्त्री का आहार अट्ठाईस कवल परिमाण माना गया है। पुरुष के 1-2-3 से इकतीस ग्रास तक और स्त्री के 1-2-3 से सत्ताईस ग्रास तक कवल परिमाण प्रत्याख्यान होता है।
गृह प्रमाण - अमुक या इतने घर से ही आहार आदि ग्रहण करना, गृह परिमाण प्रत्याख्यान है।
भिक्षा प्रमाण- संसृष्ट आदि भिक्षा का परिमाण करना, भिक्षा परिमाण प्रत्याख्यान है।
द्रव्य प्रमाण- अमुक द्रव्य ही ग्रहण करना, द्रव्य परिमाण कृत प्रत्याख्यान है। दिगम्बर मूलाचार में इस प्रत्याख्यन का नाम परिमाणगत है ।
8. निरवशेष - अशन, पान, खादिम और स्वादिम- इन चतुर्विध आहार का सम्पूर्ण त्याग करना, निरवशेष प्रत्याख्यान है।
9. साकेत- इस प्रत्याख्यान शब्द के दो अर्थ उपलब्ध होते हैं
प्रथम अर्थ के अनुसार केत अर्थात घर, जो घर में रहता है ऐसे गृहस्थ के योग्य प्रत्याख्यान साकेत प्रत्याख्यान कहलाता है। यह अर्थ केवल गृहस्थ से सम्बन्धित है।
द्वितीय अर्थ के अनुसार केत अर्थात चिह्न। अंगूठा, मुट्ठि, गांठ आदि चिह्नों का संकल्प करके किया जाने वाला प्रत्याख्यान सांकेतिक प्रत्याख्यान कहलाता है। यह अर्थ साधु और गृहस्थ दोनों के विषय में लागू होता है।