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324...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
दिगम्बर मान्य मूलाचार में इस प्रत्याख्यान का स्वरूप बतलाते हुए कहा गया है कि शक्ति आदि की अपेक्षा संकल्प सहित उपवास करना, जैसे- दूसरे दिन प्रात: स्वाध्याय वेला के अनन्तर देह सामर्थ्य रहा तो उपवास आदि करूंगा, यदि शारीरिक बल न रहा तो नहीं करूंगा, इस प्रकार का संकल्प करके प्रत्याख्यान करना, कोटिसहित प्रत्याख्यान है।22
4. नियन्त्रित- स्वस्थ रहूँ या रूग्ण किसी भी स्थिति में 'मैं अमुक प्रकार का तप अमुक-अमुक दिन अवश्य करूंगा' इस प्रकार के संकल्पपूर्वक प्रत्याख्यान करना, नियन्त्रित प्रत्याख्यान है।
नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी के अनुसार जिसमें पूर्व संकल्पित तप किसी भी स्थिति में निश्चित रूप से किया जाता है, वह नियन्त्रित प्रत्याख्यान है। इस प्रत्याख्यान में स्वस्थता हो या रुग्णता, अपवाद विधि का सेवन नहीं किया जाता है। यह प्रत्याख्यान चौदहपूर्वी, जिनकल्पी एवं प्रथम संहननधारी मुनियों के समय प्रवृत्त था।
तात्पर्य है कि चौदहपूर्वी आदि मुनिगण ही इस प्रत्याख्यान का पालन कर सकते हैं। पूर्वकाल में स्थविर मुनि भी इस प्रत्याख्यान के अधिकारी होते थे। वर्तमान में यह प्रत्याख्यान विलुप्त हो गया है।23 दिगम्बर साहित्य में इस प्रत्याख्यान का नाम विखण्डित है, पर दोनों में अर्थ भेद नहीं है। .
5. साकार- आकार अर्थात मर्यादा या अपवाद सहित प्रत्याख्यान करना। जैसे- अमुक प्रकार की स्थिति नहीं बनेगी तो आहार आदि का त्याग रखूगा, अन्यथा परित्यक्त आहार आदि का सेवन करूंगा, इस तरह अपवाद पूर्वक संकल्पित प्रत्याख्यान करना, साकार प्रत्याख्यान है।
6. अनाकार- किसी तरह का अपवाद रखे बिना नियम आदि ग्रहण करना, अनाकार प्रत्याख्यान है।
टीकाकार अभयदेवसूरि के मतानुसार साकार प्रत्याख्यान में सभी प्रकार के अपवाद व्यवहार में लाये जा सकते हैं, परन्तु अनाकार प्रत्याख्यान में अनाभोग
और सहसाकार- ये दो आगार ही ग्राह्य हैं, क्योंकि इन अपवादों का सेवन इच्छापूर्वक नहीं होता, पर अकस्मात होता है।
दिगम्बराचार्य वट्टकेर के अनुसार 'अमुक नक्षत्र में अमुक तपस्या करूंगा' इस संकल्प से नक्षत्र आदि भेद के आधार पर दीर्घकालीन तपस्या करना,