________________
266...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में भिक्षाचर्या, स्थंडिलगमन, विहार, निद्रा आदि शरीरजन्य प्रवृत्तियों में दोष लगने पर उसकी शुद्धि के लिए यही कायोत्सर्ग किया जाता है। अभिभव कायोत्सर्ग दो स्थितियों में किया जाता है- प्रथम दीर्घकाल तक आत्मचिन्तन के लिए और दूसरा संकट आने पर जैसे- विप्लव, अग्निकांड, दुर्भिक्ष आदि होने पर।
नियमत: चेष्टा कायोत्सर्ग परिमित काल के लिए किया जाता है, जबकि दूसरा अभिभव कायोत्सर्ग यावज्जीवन के लिए होता है। यावज्जीवन के लिए किया जाने वाला कायोत्सर्ग उपसर्ग विशेष के आने पर सागारी संथारा रूप कायोत्सर्ग होता है। यह कायोत्सर्ग करते समय साधक यह चिन्तन करता है कि यदि उपस्थित उपसर्ग के कारण मेरा प्राणान्त हो जाये तो, मेरा यह कायोत्सर्ग यावज्जीवन के लिए है। यदि मैं जीवित रह जाऊँ तो उपसर्ग रहने तक कायोत्सर्ग है। __अभिभव कायोत्सर्ग के सागारी अनशन, आमरण अनशन, भवचरिम प्रत्याख्यान आदि नाम भी हैं। अनशन रूप में यह कायोत्सर्ग तीन प्रकार का होता है- 1. भक्त परिज्ञा 2. इंगित और 3. पादपोपगमन। इसे शास्त्रीय भाषा में अभ्युद्यतमरण कहा गया है। इसका प्रसिद्ध नाम समाधिमरण है।
प्रथम चेष्टा कायोत्सर्ग, अन्तिम अभिभव कायोत्सर्ग के लिए अभ्यास स्वरूप होता है। प्रतिदिन नियत कालिक कायोत्सर्ग का अभ्यास करते रहने से एक दिन वह आत्मबल प्राप्त हो जाता है कि जिसके परिणामस्वरूप उद्यतविहारी (उत्कृष्ट अभिग्रहादि धारण करने वाला) मुनि मृत्यु के सम्मुख होकर उसे हंसता हुआ स्वीकार करता है और भव श्रृंखला का विच्छेद कर परमात्म तत्त्व को उपलब्ध कर लेता है।
चेष्टा कायोत्सर्ग का काल- शास्त्रकारों ने चेष्टा कायोत्सर्ग का काल उच्छ्वास के आधार पर निश्चित किया है जैसे- 8, 25, 27, 300, 500 और 1008 उच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना। यह कायोत्सर्ग विभिन्न स्थितियों में किया जाता है।
यहाँ उच्छ्वास शब्द के अभिप्राय को सुस्पष्ट करते हुए आवश्यकनियुक्ति में कहा गया है कि एक उच्छ्वास का कालमान एक श्लोक के चतुर्थ पाद का स्मरण करना है। एक श्लोक में चार चरण होते हैं। एक चरण का स्मरण करने में जितना समय लगता है उतना एक श्वासोश्वास क्रिया में लगना चाहिए।39