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272...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
. चूर्णिकार जिनदासगणी के निर्देशानुसार स्वप्न में मैथुन दृष्टि का विपर्यास होने पर सौ श्वासोच्छ्वास तथा स्त्री-विपर्यास होने पर एक सौ आठ उच्छ्वास अथवा चार लोगस्ससूत्र एवं एक नमस्कारमन्त्र अधिक का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• आयंबिल और निर्विकृति के प्रत्याख्यान को पूर्ण करते समय सत्ताईस श्वासोच्छ्वास या ‘सागरवर गंभीरा' तक एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• उपाश्रय या किसी वसति के अधिष्ठित देवता की अनुमति प्राप्त करने या आराधना करने निमित्त सत्ताईस श्वासोच्छ्वास या पूर्ववत एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
. भिक्षाचर्या में अनैषणीय वस्तु का ग्रहण होने पर उसका प्रतिक्रमण करने के लिए आठ उच्छ्वास या एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• काल प्रतिलेखन एवं स्वाध्याय प्रस्थापना के समय आठ उच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• श्रुतस्कन्ध (आगमसूत्र का बृहद् भाग) का परावर्तन करते समय पच्चीस उच्छ्वास या 'चंदेसु निम्मलयरा' तक एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।45
• भाष्यकार जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के उल्लेखानुसार किसी शुभ कार्य के प्रारम्भ में, यात्रा में, यदि किसी प्रकार का उपसर्ग, बाधा या अपशकुन हो जाए तो आठ श्वासोश्वास अथवा एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• दूसरी बार शुभ कार्यादि करने में पुन: बाधा उपस्थित हो जाये तो सोलह श्वास-प्रश्वास का अथवा दो नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। यदि शुभ कार्य के प्रारम्भ में तीसरी बार बाधा उपस्थित हो जाये तो बत्तीस श्वास-प्रश्वास का अथवा चार नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। यदि चौथी बार भी बाधा उपस्थित हो, तो विघ्न आएगा ही, ऐसा समझकर शुभ कार्य या विहार यात्रा को स्थगित कर देना चाहिए।46
• आचार्य वर्धमानसूरि के मतानुसार जिन चैत्य, श्रुत, तीर्थ, ज्ञान, दर्शन, चारित्र- इन सब की पूजा एवं आराधना के लिए 'वंदणवत्तियाए' का पाठ बोलकर